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________________ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय में क्रमशः ज्ञान की मात्रा बढ़ती है। एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवों के मन होता ही नहीं। पंचेन्द्रिय में मन गर्भज के होता है। समूर्छिम मनुष्य और तिर्यश्च में मन का अभाव है। कृमि, चींटी आदि में सूक्ष्म मन विद्यमान है। वे हित में प्रवृत्ति, अनिष्ट में निवृत्ति करते हैं। किन्तु उनमें दीर्घकालीन चिन्तन शक्ति का अभाव होता है। इसलिये वे मन रहित माने जाते हैं। मन युक्त प्राणी निमित्त के योग से देह-यात्रा के अतिरिक्त पूर्वजन्म की घटनावलियों का भी स्मरण कर सकते हैं। दीर्घकालीन चिन्तन और कर्मशक्ति उनमें पाई जाती है। ___बाहरी दुनियां का ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा होता है। इन्द्रियां उस ज्ञान को मस्तिष्क तक पहुंचाती है। मस्तिष्क द्रव्य मन तक और द्रव्य मन भाव मन तक पहुंचाता है। भाव मन आत्मा को यह ज्ञान प्रेषित करता है। इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण किये गए सब विषयों में मन की गति है। मन का विकास कैसे हो ? इस संदर्भ में आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में मनोविकास की चार भूमिकाओं तथा आचार्य तुलसी ने मनोनुशासनम् में मनोविकास की छह भूमिकाओं का उल्लेख किया है। 1. मूढ़ 2. विक्षिप्त 3. यातायात 4. श्लिष्ट 5. सुलीन 6. निरुद्ध मूढ - मोहकर्म के प्रबल वेग में मन की स्थिति मूढ़ होती है। 32 मूढ अवस्था में आसक्ति और द्वेष बहुत प्रबल होते हैं। यह तमोगुण प्रधान अवस्था है। इसमें मन की वृत्ति बहिर्मुख रहती है। वह मन बाह्य जगत् और परिस्थिति का प्रतिबिम्ब ग्रहण करता रहता है। विक्षिप्त- विक्षिप्त अवस्था में मन चंचल रहता है। यह रजोगुण प्रधान स्थिति है। इसमें व्यक्ति अन्तर्मुखी बनना चाहता है किन्तु रजोगुण उसे विक्षिप्त करता रहता है। प्रारम्भ में कुछ समय के लिए मन की एकाग्रता बनती है फिर विचलित हो जाता है। अन्तर्निरीक्षण की स्थिति का उसे किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं होता है। यातायात- विक्षिप्त की अगली भूमिका यातायात की है। इस भूमिका में व्यक्ति का मन अन्तर्मुखता का अनुभव करता है किन्तु लम्बे समय तक वह स्थिति बनी नहीं रहती।34 अन्तर्निरीक्षण करते-करते वह फिर बाहर आ जाता है। इतना अवश्य है कि इससे अन्तर्निरीक्षण का बंद द्वार खुल जाता है। यातायात शब्द से ही स्पष्ट होता है कि जिस अवस्था में मन कभी बाहर कभी भीतर भ्रमण करता रहता है। 372 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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