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सात शरीरों के अपने-अपने कार्य और प्रभाव है। भौतिक (स्थूल) शरीर जन्मजात है तथा इन्द्रिय गम्य है, कारण शरीर सूक्ष्म है, किन्तु वह कर्म प्रभावशाली नहीं है।
कला, सौन्दर्य, विज्ञान, कल्पना, वैचारिक एवं आध्यात्मिक क्रांति, मानस शरीर के अवदान है, इस अध्याय में हमने विशेष रूप से जैन सम्मत शरीर-रचना और शरीर के क्रिया-कलापों के साथ-साथ विज्ञान के संदर्भ में शरीर-रचना और शारीरिक क्रिया - कलापों का अध्ययन भी किया। क्रिया के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक स्वरूप के बारे में अध्ययन से कहा जा सकता है-विज्ञान में केवल स्थूल शरीर का ही अध्ययन किया गया है, इसके कारणभूत अन्य शरीरों के विषय में अनुसंधान की अभी आवश्यकता है।
विज्ञान और अध्यात्म के इस समन्वित अध्ययन से शरीर के सूक्ष्म रहस्यों के अवबोध के साथ भाव जगत के सूक्ष्म प्रकंपनों को भी पढ़ सके, भाव जगत् में पैदा होने वाले स्पंदन अहिंसा की, संवेदनशीलता की चेतना को जागृत कर सके, यही सार्थकता की दिशा होगी।
संदर्भ-सूची 1. सर्वार्थसिद्धि; 2/33,36. 2. जैन सिद्धांत दीपिका; 7/25 3. अनुयोगद्वार हारिभद्रीय वृत्ति; पृ. 87 4. अनुयोगद्वार हारिभद्रीय वृत्ति; पृ. 87 5. अनुयोगद्वार हारिभद्रीय वृत्ति; पृ. 87 6. (क) अनुयोगद्वार हारिभद्रीय वृत्ति;; पृ. 87
(ख) सर्वार्थ सिद्धि; 2/45/197,यद् गर्भजं यच्च जं संमूर्छजं तत्सर्वमौदारिकं द्रष्टव्यं 7. तत्त्वार्थ भाष्य; 2/49 8. तत्त्वार्थ भाष्य, टीका; 2/48 9. गोम्मटसार जीव काण्ड; गा. 232 10. धवला; 1,1-56.293-3 (आहरति आत्मसात्करोति सूक्ष्मानर्थानेनेति आहारः) 11. तत्त्वार्थ सूत्र भाष्यानुसारिणी टीका; 2/49 पृ. 209 12. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश-भा.1; पृ. 296 13. तत्त्वार्थ सूत्र; 2/49 14. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश भा.1; पृ. 296
क्रिया और शरीर - विज्ञान
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