________________
कर्म क्रिया की प्रतिक्रिया है। कर्मवाद आधार क्रिया है। क्रिया के अभाव में कर्म का अस्तित्व संभव नहीं। मीमांसीय सिद्धांत का आधारभूत प्रश्न - क्रिया क्या है ? क्रिया का स्वरूप क्या है ? क्रियाएं किस प्रकार कार्य करती है ? यद्यपि क्रिया के वर्णन को अधिकाधिक विस्तृत किया जा सकता है, तथापि शारीरिक क्रियाओं के संदर्भ में क्रिया के कुछ आयाम ही प्रासंगिक प्रतीत होते हैं, जिनका यत्किञ्चित् विवेचन प्रस्तुत अध्याय में किया गया है। मनोविज्ञान में शरीर-रचना और उसका प्रभाव
मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्ति की चित्तवृत्ति और शारीरिक रचना देखकर उसके स्वभाव की व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। इस संदर्भ में जर्मन मनोचिकित्सक क्रेशमर61 एवं कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्राध्यापक शैल्डन 62 का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। शरीर की रचना एवं व्यक्तित्व में क्या सम्बन्ध है ? इस विषय में शैल्डन का अभिमत है कि शरीर-रचना में मुख्य तीन तत्त्व हैं- जठर, स्नायु, ज्ञानकेन्द्र। तीनों में जो जिस रूप में क्रियाशील होता है, उसी प्रकार का व्यक्तित्व बन जाता है। शरीर रचना के तीन प्रकार हैं-63 उनके मत से शरीर रचना के साथ स्वभाव का संबंध निम्नांकित चार्ट से संक्षेप में समझा जा सकता है।
क्रेशमर : शारीरिक रचना और स्वभाव
नाम शरीर - रचना स्वभाव मेद प्रधान शरीर स्थूल, गोलाकार, मिलनसार, आराम प्रिय,बात में रस,
वसायुक्त, छोटा कद बहिर्मुखता स्नायु प्रधान प्रमाणयुक्त शारीरिक साहसी, नीडर.प्रशासन में
गठन सुदृढ़ स्नायु संपन्न कुशल,समायोजन दक्षता अस्थि लम्बा शरीर, निर्बल, लगनशील, चिंतनशील, असहिष्णु, पतला
__ आलोचक, अन्तर्मुखता मिश्र प्रधान शरीर के अंग प्रमाणोपेत अक्कडपन, व्यवहार कुशलता से रहित,
न हो बेड़ोल हो, स्वार्थी वैसा शरीर
प्रधान
क्रिया और शरीर - विज्ञान
355