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जैन दृष्टि से सूक्ष्म शरीर चतुःस्पर्शी परमाणु स्कंधों से निर्मित हैं। चतुःस्पर्शी पुद्गल भारहीन होते हैं। उनमें विद्युत आवेश नहीं होता । परामनोविज्ञान की भाषा में सूक्ष्म शरीर, 'पोषकतत्व कणों से निर्मित हैं। चतुःस्पर्शी पुद्गलों की तरह ही 'न्यूत्रिलोन (Neutrilone) कणों में भी भार, विद्युत आवेश और प्रस्फुटन नहीं होता । विज्ञान उन कर्णों को भौतिक नहीं मानता किन्तु जैन दर्शन सम्मत सूक्ष्म शरीर भौतिक है, पौद्गलिक है । 'न्यूत्रिलोन' के कण भी सीधे नहीं देखे जाते। दूसरे कणों के साथ जब उनका संघर्ष होता है तब वे पकड़ में आते हैं। इससे भी सूक्ष्म कणों से हमारे सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है। 22 (ख)
जैनदर्शन में शरीर रचना
जैन दर्शन आत्मा को शरीर से सर्वथा भिन्न नहीं मानता। संसार दशा में दोनों का गहरा सम्बन्ध है। जिस जीव में इन्द्रिय और मानसज्ञान की जितनी क्षमता होती है उसी के अनुरूप उसकी शरीर रचना होती है और शरीर रचना के अनुसार ही शारीरिक प्रवृत्ति होती है। जैन दर्शन में शरीर रचना और उसके आकार-प्रकार के विषय में गहन चिन्तन किया गया है। रचना की दृष्टि से संहनन और आकार की दृष्टि से संस्थान का विचार मननीय है।
संहनन
संहनन का तात्पर्य है- अस्थि रचना | 23 यह मत श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में स्वीकृत है। श्वेताम्बर परम्परा की दृष्टि से एकेन्द्रिय जीवों में अस्थि रचना नहीं होती फिर भी उनमें सेवार्त 24 तथा दिगम्बर मतानुसार उनमें असंप्राप्त सृपाटिका 25 नामक संहनन होता है। देवता और नारक जीवों में एक भी संहनन नहीं होता। उनके शरीर में अस्थियां, शिराएं और स्नायु नहीं होते। 26 अस्थि-र - रचना आदि का अभाव इसलिए है कि वे वैक्रिय शरीरधारी होते हैं । किन्तु वे प्रथम संहनन से युक्त भी होते हैं। इस संदर्भ में आचार्य हरिभद्र की परिभाषा यौक्तिक प्रतीत होती है। उन्होंने अस्थि-संचय से उपचित शक्ति-विशेष को संहनन कहा है। 27 शरीर विज्ञान के अनुसार मानव का पूरा ढांचा अस्थियों से निर्मित है। अस्थियों की लम्बी, गोल, चपटी, पतली आदि विभिन्न आकृतियां हैं। अस्थि-रचना में मुख्य योगदान 'पेराथाइराइड ग्रंथि' का है। इस ग्रंथि मुख्य स्राव 'पेराथोर्मोन' है जो शरीर में कैल्शियम की मात्रा का निर्धारण कर हड्डियों के समुचित विकास में सहायक बनता है। 28 इस ग्रंथि को संहनन नाम कर्म का संवादी कहा जा सकता है। संहनन-संरचना में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
क्रिया और शरीर-विज्ञान
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