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कुछ आचार्य कर्म और कार्मण शरीर को एक ही मानते है।21 किन्तु दोनों एक नहीं। कर्म की उत्पत्ति नाम कर्म तथा मोहकर्म से होती है। जबकि कार्मण शरीर का विपाक कार्मण शरीर को ही पुष्ट करता है। इस हेतु इन्हें सर्वथा एक नहीं माना जा सकता। शरीर नाम कर्म की प्रकृति कर्मों से भिन्न नहीं, इस अपेक्षा से कर्म और कार्मण को एक भी कह सकते हैं।
कर्म शरीर संस्कारों का संग्राहक है। जन्म-जन्मान्तरों की संस्कार-परम्परा इसके साथ जुड़ी है। जैन दर्शन के अनुसार व्यक्ति के चारित्र, ज्ञान, व्यवहार, व्यक्तित्व आदि के बीज कर्म शरीर में निहित हैं। जेनेटिक साइंस के अनुसार व्यक्ति के आकार-प्रकार, संस्कारों का मूल जीन है।
सहावस्थान और क्रम-व्यवस्था में कम से कम एक साथ दो शरीर व अधिकतम चार शरीर पाये जाते हैं। उनका योग निम्नानुसार है
(1) एक साथ दो शरीर - तैजस्, कार्मण। (2) एक साथ तीन शरीर - तैजस्, कार्मण, औदारिक। अथवा तैजस्,
कार्मण, वैक्रिय। (3) एक साथ चार शरीर - तैजस्, कार्मण, औदारिक, आहारक।
अथवा तैजस्, कार्मण, औदारिक, वैक्रिया औदारिक आदि शरीरों का क्रम भी समीचीन है। स्वल्प-पुद्गलों से निष्पन्न तथा बादर-परिणति के कारण औदारिक शरीर का स्थान प्रथम है। वैक्रिय आदि क्रमश: सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम होने से उन्हें बाद के क्रम में रखा गया है। इस प्रकार क्रमव्यवस्था का हेतु उत्तरोत्तर सूक्ष्मता है। सूक्ष्म शरीर और आधुनिक विज्ञान
परामनोविज्ञान के क्षेत्र में सूक्ष्म शरीर के संदर्भ में काफी प्रयोग और परीक्षण हुए हैं। इससे सूक्ष्म शरीर के बारे में अनेक रहस्य अनावृत हुए हैं। किरिलियन फोटोग्राफी के विकास के पश्चात् तो विज्ञान जगत् में यह धारणा स्पष्ट हो गई है कि स्थूल शरीर के परे सूक्ष्म शरीर भी है। मृत व्यक्ति का फोटो लेने पर ज्ञात हुआ कि शरीर जैसी ही एक आकृति शरीर से बाहर निकलती है। पहले उसे आत्मा माना जाता रहा किन्तु वह आत्मा नहीं, सूक्ष्म शरीर था। आत्मा अमूर्त है, वह चर्म चक्षु का विषय नहीं बन सकती।22
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया