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that a source of sound is in a state of vibration for example the strings of a piano and the air in an organ pipe are all in a state of vibration when they are producting sound.40 इस प्रकार विज्ञान के अनुसार शब्द तरंगात्मक है। शब्द के प्रकार
जैन दर्शन में शब्द के तीन प्रकार हैं - जीवशब्द, अजीवशब्द और मिश्रशब्द।
जीव के प्रयत्न से उत्पन्न होने वाला शब्द जीव शब्द है, जैसे- मनुष्य का शब्द। जड़ पदार्थों से निकलने वाला शब्द अजीव है, जैसे - टूटती हुई लकड़ी का शब्द।
जिस शब्द की उत्पत्ति जीव के प्रयत्न के साथ यंत्र आदि का योग होता है, वह मिश्र शब्द है। दूसरे शब्दों में सचित्त और अचित्त दोनों के योग से जो शब्द होता है, वह मिश्र शब्द कहलाता है। जैसे वाद्ययन्त्रों- बांसूरी आदि का शब्द।
वैज्ञानिकों ने शब्द को दो वर्गों में बांटा है- संगीत ध्वनि और कोलाहल ध्वनि शब्द की गति
शब्द की गति के विषय में जैनाचार्यों का विलक्षण मन्तव्य हैं।
है गौतम ! जो भाषा भिन्नत्व (भेद प्राप्त- भेदन किये हुए) से निसृत या प्रसारित होती है,वह अनन्तगुणी वृद्धि पाकर लोक के अन्तिम भाग को स्पर्श करती है। जो भाषा अभिन्न (भेदन नहीं किये हुए) रूप से निसृत होती है, वह असंख्यात योजन जाकर भेद को प्राप्त होती है।41
ज्ञातव्य यह है कि अभिन्न भाषा परिवर्द्धन को प्राप्त नहीं होती। स्वाभाविक गति से असंख्यात योजन तक जाकर नष्ट हो जाती है। शब्दों के बिखर जाने से भाषा रूप नहीं रहती। रूपान्तरित भिन्न भाषा अनन्त गुण परिवर्द्धित होकर लोक की चरम सीमा तक पहुंच जाती है। वक्ता बोलने से पूर्व भाषा वर्गणाओं का ग्रहण, परिणमन और उत्सर्जन करता है। उत्सर्जित भाषा वर्गणा के पुद्गल आकाश में फैल जाते हैं। किन्तु वे वक्ता के मंद प्रयत्न के कारण अभिन्न रहकर अन्त में शक्ति हीन बन जाते हैं। वक्ता का तीव्र प्रयत्न हो तो वे ही पुद्गल भिन्न होकर नये स्कंधों को ग्रहण करते-करते बहुत दूर तक फैल जाते हैं।
क्रिया और परिणमन का सिद्धांत
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