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मोहनीय, मिश्रमोहनीय तथा मिथ्यात्व मोहनीय का सम्बन्ध सम्यक्त्व से है। चारित्र का सम्बन्ध है सोलह कषाय और नोकषाय से। कषाय-नोकषाय का जितना-जितना क्षयोपशम, उपशम और क्षय होता है, चारित्र की उज्ज्वलता उतनी ही बढ़ती जाती है। चारित्र के 5 प्रकार हैं- 1. सामायिक 2. छेदोपस्थापनीय 3. परिहारविशुद्धि 4. सूक्ष्मसंपराय 5. यथाख्याता चारित्र रूप परिणति चारित्र परिणाम है।
__10. वेद परिणाम- यह नोकषाय का एक प्रकार है। वेद अर्थात् विकार। कामवासना का जागृत होना वेद कहलाता है। वेद का अस्तित्व नौवें गुणस्थान तक है। स्त्रीवेद, पुरूष वेद और नपुंसक वेदा स्त्री की पुरूषाभिलाषा, पुरूष की स्त्री सम्बन्धी अभिलाषा और नपुंसक की उभयमुखी अभिलाषा वेद है। जीवों का वेद रूप परिणमन वेद परिणाम है। अजीव परिणमन
परिणमन जीव-अजीव दोनों में घटित होता है। जीव की तरह अजीव परिणमन के भी दस प्रकार हैं- बंध, गति, संस्थान, भेद, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरु; लघु, शब्द।
(1) बंध- बंध-श्लेष भी पुद्गल का परिणमन है। 'संश्लेष: बंधः' अर्थात् बंध का अर्थ संश्लेष, मिलना है। अवयवों का अवयवी के रूप में परिणत होना ही बंध है।14
संयोग और बंध में अन्तर है। संयोग में केवल अन्तर रहित अवस्थिति होती है बंध में एकत्व होता है। बन्ध में पदार्थ का स्निग्धत्व एवं रूक्षत्वगुण निमित्त बनता है।15 इन गुणों की जघन्य मात्रा से बंध नहीं होता।16 बंध के दो प्रकार हैं- स्वाभाविक एवं प्रायोगिका स्वभाविक बंध भी दो प्रकार का है - सादि एवं अनादि।18
अनादिबंध- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय के प्रदेशों का परस्पर सम्बन्ध अनादिकालीन है।19 ये तीनों अस्तिकाय व्यापक हैं। प्रत्येक अपने स्थान पर अवस्थित हैं। उनका संकोच-विस्तार नहीं होता। इनके प्रदेशों का परस्पर देशबंध है, सर्वबंध नहीं। 20
सादिबंध-सादि विस्रसा बंध के तीन प्रकार हैं -1 बंधन प्रत्ययिक, 2. भाजन प्रत्ययिक 3. परिणाम प्रत्ययिक।
बंधन प्रत्ययिक- यह स्कंध निर्माण का सिद्धांत है। दो परमाणु मिलकर द्विप्रदेशी स्कंध, तीन परमाणु मिलकर त्रिप्रदेशी यावत् अनन्त परमाणु मिलकर अनन्त
क्रिया और परिणमन का सिद्धांत
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