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कारण है। जो कारण स्वयं कार्य में परिणत हो जाता है वह उपादान है। जो कार्य रूप में परिणत न होकर परिणति में सहयोगी बनता है वह निमित्त या सहकारी कारण है। घटपट में मिट्टी और तन्तु उपादान है। कुंभकार और जुलाहा निमित्त है।
बाह्य निमित्त का योग होने पर उपादान कार्यरूप में परिणत हो जाता है। मिट्टी में घड़ा, सिकोरा, प्याला, सुराही आदि अनेक पर्यायों की संभावना है किन्तु कुंभकार की इच्छा, प्रयत्न और चक्र आदि सामग्री उपलब्ध होने पर वह तद् तद् रूप परिणत हो जाती है। कोई भी द्रव्य किसी दूसरे द्रव्य में असंभव परिवर्तन करने में सक्षम नहीं है। परिणमन स्वाभावानुरूप ही होता है। प्रकृति का विधान निश्चित हैं। अनिश्चित अगले क्षण की पर्याय है। परिणमन का आधार
परिणमन का मूलाधार त्रिपदी है। जिसे उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य के नाम से जाना जाता है। दूसरी दृष्टि से परिणमन का आधार है पर्याय। पर्याय जगत् बहुत विशाल है। द्रव्य का संसार सीमित है। एक द्रव्य के अनन्त पर्याय हैं। पर्यायों की यवनिका में द्रव्य छिपा हुआ है। प्रत्येक अस्तित्व का एक आयाम है- काल, जो अस्तित्व में व्याप्त होकर उसे परिणमनशील रखता है। परिवर्तन की प्रक्रिया अंतहीन है। सूक्ष्म परिवर्तन इन्द्रिय गम्य नहीं है। जीव और पुद्गलों के पारस्परिक निमित्तों से होने वाला केवल स्थूल परिणमन ही इन्द्रियगम्य है।
__ परिणमन का संबंध अस्तित्व और नास्तित्व दोनों से है। भगवती सूत्र के अनुसार अस्तित्व का अस्तित्व में और नास्तित्व का नास्तित्व में परिणमन होता है। जैसेअंगुली का सरल अवस्था से कुटिल अवस्था में जाना।
नास्तित्व का नास्तित्व में परिणमन - मिट्टी का नास्तित्व तंतु में और तन्तु का मिट्टी नास्तित्वरूप परिणमन होता है।
परिणमन गति अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है। अरस्तु ने पदार्थ की चार प्रकार की गति मानी है। उद्भव और विनाश की जितनी भी प्रक्रियाएं हैं, वे सब गति के अन्तर्गत हैं। चार गति हैं___1. तात्विक गति- किसी वस्तु का सत् में प्रकट होना और असत् में विलीन
हो जाना।
क्रिया और परिणमन का सिद्धांत
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