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5. जैन सिद्धान्त दीपिका; 4/25 (तृतीय संस्करण, 1982) 6. राजवार्तिक; 9/7/11/603, 34 7. (क) राजवार्तिक; 9/7/11/603, 33
(ख) भगवती भाष्य खण्ड-1, 1/141-146 8. तत्त्वार्थ राजवार्तिक; 6/1/10 8 (अ) उद्धृत नवपदार्थ, पृ. 420 नवतत्त्व साहित्य संग्रह, श्री नव तत्त्व प्रकरणम् गा.36 9. तत्त्वार्थ सूत्र; 6/1/4 10. नव पदार्थ; पृ. 455 11. भगवती; 8/428-430 12. तत्त्वार्थ सूत्र; 6/1-2, (ख) जैन सिद्धांत दीपिका; 4/16 13. आचारांग भाष्य; पृ . 26 14. आचारांग 1/4/2 शीलांक टीका पत्रांक; 164 15. नवपदार्थ; पृ. 370 16. नवपदार्थ; पृ.369 17. ज्ञानसार; पृ. 100 18. समयसार; 171 19. ठाणं; 5/109 20. समवायांग; 5/4 21. तत्त्वार्थ राजवार्तिक; 8/1/28.594 22. सर्वार्थसिद्ध; 8/375 23. धवला; दुःख शस्यं कर्म क्षेत्रं कृषन्ति फलवत्कुर्वन्ति इति कषाया :। 24. आचारांग; 3/73 25. स्थानांग; 2/2 26. तत्त्वार्थ भाष्यानुसरिणी टीका; 8/8/9- अधिकरणं जीवाजीवा :। 27. प्रश्न व्याकरण, आश्रव द्वार (प्रथमाध्ययन) 1/5-30 28. आचारांग; 2/86 29. आचारांग चूर्णि; पृ. 72 30 अंगुत्तर निकाय; 3/58, 6/63 31. गीता; 16/6 32. योगसूत्र; 2/3 - अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशा: क्लेशाः। . 33. नीतिशास्त्र; पृ. 63 34. ठाणं; 2/59 35. (क) तत्त्वार्थ; 1/4
(ख) सर्वार्थसिद्धि-शुभाशुभकर्मागम द्वार रूप आश्रवः, आश्रव निरोधलक्षण: संवरः।
क्रिया और अन्तक्रिया
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