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भिन्न भी है और अभिन्न भी। एक लब्धिरूप और दूसरी क्रिया रूप होने से भिन्न हैं किन्तु निर्जरा कार्य और निर्जरा की क्रिया कारण होने से और दोनों निरवद्य होने से एक भी हैं। दोनों निरवद्य हैं। निर्जरा मोक्ष का अंश है। नये कर्मों के आश्रवण से निवृत हुए बिना भवभ्रमण की श्रृंखला नहीं टूटती। कर्मों के आंशिक-क्षय से आत्मा का आंशिक उज्वल होना निर्जरा है। जिस क्रिया से उज्वलता होती है, वह निर्जरा की क्रिया है।
निर्जरा के लिए एक शब्द-विधुनन मिलता है, इसका अर्थ है प्रकंपित कर देना। जैसे - पक्षी पंखों को हिलाकर सारे रजकणों को धुन डालता है, हिला डालता है, वैसे ही निर्जरा करने वाला अपनी सत्प्रवृत्ति, सत्क्रिया अथवा सदनुष्ठान के द्वारा कर्मरजों को धुन डालता है, प्रकंपित कर, झाड़कर साफ कर देता है। इस प्रकार निर्जरा - प्रकंपन की प्रक्रिया है।
क्रिया और अन्तक्रिया-सम्पूर्ण कर्मों का मूलोच्छेद करने की क्रिया अन्तक्रिया कहलाती है। अन्तक्रिया मोक्षासाधिका अन्तिम क्रिया है। अभयदेवसूरि ने अन्तक्रिया को “योग निरोधाभिधाने शुक्ल ध्यानेन सकल कर्म ध्वंस रूपा" कहा है।129
मोक्ष का अर्थ स्वरूप की उपलब्धि या स्वरूप में अवस्थिति है। बंध है तो उसका प्रतिपक्षी मोक्ष भी है। बंध कर्म-संश्लेष है। मोक्ष कर्म का सम्पूर्ण क्षय है- कृत्सकर्म वियोगलक्षणो मोक्षः।130 मोक्ष का लक्षण सम्पूर्ण कर्म बंधनों से मुक्त होना है। मोक्ष साध्य है। संवर-निर्जरा साधन है। जैसे- किसी बड़े तालाब के जलागम स्रोतों को बंद कर, भीतर के पानी को जल-प्रणालियों के द्वारा बाहर निकाला जाता है। शेष बचे हुए पानी के सूर्य की प्रखर किरणों से अवशोषित होने पर तालाब खाली हो जाता है। वैसे ही आत्मा की ओर आने वाले कर्म प्रवाह का संवर द्वारा निरोधकर अंत: स्थित कर्म-मलों का निर्जरा की प्रक्रिया से निष्कासित करना मोक्ष है।
__अन्तक्रिया का फलित है-पुनर्जन्म अथवा जन्म-मरण की परम्परा से पूर्ण मुक्ति।131 मृत्युकाल में मनुष्य स्थूल शरीर से मुक्त हो जाता है पर सूक्ष्म शरीर (तैजस् - कार्मण) उसके सहचर बने रहते हैं। फलस्वरूप पुनः स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है। सूक्ष्म शरीर के रहते हुए पूर्वजन्म, पुनर्जन्म की श्रृंखला का अन्त नहीं हो सकता। स्थूल शरीर का कारण सूक्ष्म शरीर है। जो साधक कर्म-बंधन के मूल का सर्वथा उन्मूलन कर देता है, उसके सूक्ष्म, स्थूल सभी शरीर छूट जाते हैं। परिणाम स्वरूप शरीरादि के निमित्त से होने वाली क्रिया का भी अन्त हो जाता है। भगवती सूत्र में कहा
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया