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एकाग्रता के आधार पर ध्यान के तीन प्रकार भी किये गये हैं- 1. मानसिक ध्यान, 2. वाचिक ध्यान, 3. कायिक ध्यान ।
(12) व्युत्सर्ग- व्युत्सर्ग में दो शब्द हैं- वि और उत्सर्गी वि का अर्थ विशिष्ट और उत्सर्ग का अर्थ त्याग है। विशिष्ट त्याग करने की विधि को व्युत्सर्ग कहते हैं। आचार्य अकलंक के अनुसार - नि:संगता, अनासक्ति, निर्भयता और देहासक्ति का त्याग व्युत्सर्ग है। व्युत्सर्ग के दो प्रकार हैं - द्रव्य व्युत्सर्ग, भाव व्युत्सर्गी
1. द्रव्य व्युत्सर्ग-शारीरिक हलन-चलन आदि क्रियाओं का त्याग, साधु समुदाय का सहवास, वस्त्र-पात्रादि उपधि तथा आहार के त्याग को द्रव्य-व्युत्सर्ग कहते हैं।
2. भाव व्युत्सर्ग- क्रोधादि भाव, संसार तथा कर्मागम के हेतुओं का त्याग भाव व्युत्सर्ग कहलाता है। निर्जरा के उपर्युक्त छः प्रकार सूक्ष्म शरीर को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। इनसे कर्म शरीर क्षीण होता है। ये मोक्ष साधना में अन्तरंग हेतु बनते हैं। इसलिये ये आभ्यन्तर तप की श्रेणी में आते हैं। बाह्य तप की भांति अन्तरंग तप से स्थूल शरीर प्रभावित होता है - ऐसा प्रतीत नहीं होता किन्तु भीतर ही भीतर कर्म-शरीर के भेदन करने की प्रक्रिया चलती रहती है। जैन धर्म में तप केवल स्थूल शरीर की साधना नहीं है। यहां तप का अर्थ इन्द्रिय और मन का निग्रह करना है। कार्मण शरीर का तापक होने से तप अधिक निर्मलता को संपादित करता है और सघन निर्जरा का हेतु बनता है।
आत्म शुद्धि के लक्ष्य से स्वेच्छापूर्वक किए गये ये सभी तप सकाम निर्जरा के अन्तर्गत आते हैं। सकाम तप अविपाकजा निर्जरा का हेतु है।121 आचार्य भिक्षु ने कहासकाम तप अपने सामर्थ्य से अनुदय प्राप्त कर्मों को उदयावलिका में लाकर अलग करता है। जैसे-आम, पनस आदि को प्रयत्न विशेष के द्वारा समय से पूर्व ही (औपक्रमिक क्रिया अकाल में) पका लिया जाता है। उसी प्रकार सकाम तप उदयावलिका के बाहर स्थित कर्मों को खींचकर समय से पहले उदयावलिका में ले लेता है। इसे उदीरणा कहा जाता है। उदीरणा के लिए विशेष पुरुषार्थ की अपेक्षा रहती है। निम्नोक्त संवाद इस तथ्य की पुष्टि करता हैं।
गौतम ने पूछा-भंते ! अनुदीर्ण किन्तु उदीरणा-योग्य कर्म-पुद्गलों की जो उदीरणा होती है, वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषाकार पराक्रम के द्वारा होती है अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य और अपुरुषाकार अपराक्रम के द्वारा?122
भगवान महावीर ने कहा- गौतम ! उत्थान आदि के द्वारा उदीरणा करता है,
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया