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प्रकार का है - 1. इत्वरिक, 2. यावत्कथिक । इत्वरिक आकांक्षा सहित होता है। यावत्कथिक आकांक्षा रहित होता है। इत्वरिक सावधिक होने से निश्चित अवधि के बाद भोजन ग्रहण किया जा सकता है। यावत्कथिक में भोजन की कोई आकांक्षा शेष नहीं रहती। इसलिये इसे निरवकांक्षा तप भी कहा है।" इत्वरिक अनशन के औपपातिक
सूत्र
में चौदह प्रकार निर्दिष्ट हैं। 82
(1) चतुर्थभक्त
(2) षष्ठ भक्त
(3) अष्टम भक्त
(4) दशम भक्त
(5)
द्वादश भक्त
( 6 )
चतुर्थदश भक्त
(7) षोडश भक्त
(8) अर्ध मासिक भक्त
(9) मासिक भक्त
(10) द्वैमासिक भक्त
( 11 ) त्रैमासिक भक्त (12) चतुर्थ मासिक भक्त
( 13 ) पंच मासिक भक्त
(14) षट् मासिक भक्त
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उपवास
दो दिन का उपवास
तीन दिन का उपवास
चार दिन का उपवास
पांच दिन का उपवास
छह दिन का उपवास
सात दिन का उपवास पन्द्रह दिन का उपवास
एक मास का उपवास
- दो मास का उपवास
तीन मास का उपवास
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चार मास का उपवास
पांच मास का उपवास
छह महीनें का उपवास
उत्तराध्ययन में अनशन छ: प्रकारों का निर्देश मिलता है - 1. श्रेणी तप, 2. प्रतरतप, 3. घन तप, 4. वर्ग तप, 5. वर्ग- वर्ग तप, 6. प्रकीर्ण तपा 83
(2) अवमौदर्य - ऊनोदरिका 84 अवमोदरिका 85 भी अवमौदर्य 86 के पर्यायवाची हैं। 'ऊण' और 'ओन' दोनों का अर्थ है - कम । उत्तराध्ययन में इनका इसी अर्थ में प्रयोग मिलता है 87 उयर - उदर का अर्थ है - पेट। जिस व्यक्ति की जितनी आहार - मात्रा है, उससे कम खाना ऊणोदरिका अथवा अवमोदरिका तप कहलाता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्याय की अपेक्षा यह पांच प्रकार का हैं इसे दो भागों में विभक्त किया है - (1) द्रव्यत: अवमौदर्य ( 2 ) भावतः अवमौदर्य ।
क्रिया और अन्तक्रिया
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