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में अप्रमाद संवर होता हैं। छठे गुणस्थान में मिथ्यात्व, अविरति के अतिरिक्त अठारह आश्रव हैं। भगवती के आधार पर इस गुणस्थान में दो क्रियाएं लगती हैं- 1. मायाप्रत्यया क्रिया 2. आरम्भ-प्रत्यया क्रिया। ये दोनों अशुभ योग हैं। सातवें गुणस्थान में अशुभ योग नहीं इसलिये एक माया-प्रत्यया क्रिया ही होती है। आठवें-नौवें-दसवें गुणस्थान में सातवें गुणस्थानवर्ती पांच आश्रव (कषाय, योग, मन, वचन, काया) तथा दो क्रियाएं (माया-प्रत्यया और साम्परायिकी क्रिया) होती हैं। ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें गुणस्थान में चार आश्रव, शुभयोग-शुभमन, शुभवचन और शुभकाय होते हैं। चौदहवें गुणस्थान में आश्रव का निरोध होने से पूर्ण अयोग संवर होता हैं।65
- उपर्युक्त विमर्श इस बात की ओर संकेत करता हैं कि सर्व प्रत्याख्यान निष्पन्न सर्वविरति संवर छठे गुणस्थान में होता है किन्तु छठे गुणस्थान से तेरहवेंगुणस्थान तक अयोग संवर नहीं होता। कारण, वह प्रत्याख्यान से नहीं, कर्मों के क्षय से प्राप्त होता है।
संवर के बीस भेदों में प्रथम पांच मुख्य हैं। शेष पन्द्रह भेदों का समावेश विरति संवर में हो जाता है। यहां विचारणीय विषय यह है कि प्राणातिपातपापादि पन्द्रह संवर अयोग संवर के भेद न करके विरति के अन्तर्गत क्यों लिये गये ? समाधान में कहाअविरति का आधार अठारह पाप हैं। पन्द्रह आश्रव इन पापों में समाहित हो जाते हैं। उधर पन्द्रह आश्रव मन, वचन, काया की असत् प्रवृत्ति से उत्पन्न हैं और प्रवृत्ति योग आश्रव का लक्षण है। अत: पन्द्रह आश्रव योगाश्रव में लिये गये हैं। फलतः पन्द्रह आश्रवों का निरोध विरति संवर है।
इस विषय में एक प्रश्न और उठता है कि पन्द्रह प्रकार के आश्रवों के निरोध से विरति संवर होता है तो अयोग संवर क्यों नहीं होता ? इसका समाधान यह है कि यौगिक प्रवृत्ति दो प्रकार की हैं - शुभ और अशुभा अयोग संवर इन दोनों के निरोध से होता है। प्राणातिपात आदि सावद्य प्रवृत्तियों का प्रत्याख्यान करने से विरति संवर होता है। योग पर उसका प्रभाव इतना ही है कि वह शुभ कार्यों से हटकर शुभ कार्य-क्षेत्र में सीमित हो जाता है किन्तु पूर्णतः निरुद्ध नहीं होता। अतः अयोग संवर नहीं हो सकता।66 योग संवर की निष्पत्ति
योग सावद्य-निरवद्य उभयात्मक है। सावद्य योगों के निरोध से विरति संवर और निरवद्य योग के निरोध से योग संवर होता है, योग के सर्वथा निरोध से अयोग संवर। निरवद्य योगों का जितना नियमन किया जाता है, उतने ही अनुपात में अयोग संवर
क्रिया और अन्तक्रिया
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