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वस्तुत: योग और आश्रव दो तत्त्व नहीं है। जहां योग है, वहां आश्रव निश्चित ही है। इसलिए तत्त्वार्थ सूत्र में आश्रव को पारिभाषित करते हुए कहा गया है कि कर्माकर्षण का हेतुभूत आत्म-परिणाम आश्रव हैं। 12 कायिक, वाचिक और मानसिक क्रियाएं योग
और योग ही आश्रव हैं। तीनों योगों को आश्रव कहा है। योग के द्वारा ही आत्मा में कर्म पुद्गलों का आश्रवण होता है । कर्मास्रव का निमित्त होने से योग ही आश्रव है। आचारांग के भाष्यकर्ता आचार्य महाप्रज्ञ भी लिखते हैं कि क्रिया कर्म पुद्गलों का आश्रवण करती है इसलिये उसका दूसरा नाम आश्रव है । वही वस्तुत: दिशाओं और अनुदिशाओं में अनुसंचरण का हेतु है। 13 'आसमन्तात् स्रवति कर्म अनेनेति आश्रवः अथवा 'उपादीयते कर्म अनेनेति आश्रवः, अर्थात् जिसके कारण चारों ओर से कर्मों का आगमन होता है या जिससे कर्म ग्रहण किये जाते हैं, वह आश्रव है।
आचारांग के टीकाकार ने आश्रव शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा है- जिन आरम्भ या स्रोतों के द्वारा आठ प्रकार के कर्म आकर आत्म-प्रदेशों के साथ एकीभूत हो जाते हैं, उन स्रोतों को आश्रव कहा है। 14 इस परिभाषा से द्रव्यास्रव और भावास्रव दोनों का स्वरूप स्पष्ट होता है। आत्मा की विकारी दशा भावास्रव एवं कर्म वर्गणाओं के आत्मा में आने की प्रक्रिया द्रव्यास्रव है। दोनों में कार्य-कारण सम्बन्ध है । भावास्रव कारण है, द्रव्यास्रव कार्य है। द्रव्यास्रव को कारण माने तो भावास्रव कार्य है। इस प्रकार चक्र न्याय से दोनों एक दूसरे के कारण और कार्य हैं। शुभ अथवा अशुभ जिन भावों में जीव परिणमन करता है, उसी रूप में कर्म ग्रहण होता है। शुभ प्रवृत्ति (क्रिया) पुण्य कर्म का आश्रव द्वार है। अशुभ प्रवृत्ति (क्रिया) पाप कर्म का आश्रव द्वार है। 15
श्रव द्वार शब्द का प्रयोग भी आश्रव का ही द्योतक है। जैसे नौका में जलागमन का कारण नौका का छिद्र है। किसी भवन में प्रवेश का हेतु उसका द्वार है, वैसे ही कर्मaणाओं के आगमन का द्वार आश्रव है। 16
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आचार्य भिक्षु ने आश्रव को समझाते हुए कहा है कि जिस परिणाम से आत्मा कर्मों का आश्रवण- प्रवेश होता है, उसे आश्रव कहते हैं। जिस प्रकार मकान के दरवाजा होता है, तालाब के नाला होता है, नौका के छेद होता है, उसी प्रकार जीव के आश्रव होता है। इस प्रकार आश्रव जीव का परिणाम और कर्म-बंध का हेतु है।
आचार्य महाप्रज्ञ ने आश्रव की व्याख्या तीन तथ्यों के आधार पर की है - परिणाम, क्रिया - विशेष तथा उपचयापचय ।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया