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26. (क) पुण्यपापे विधूय, निरंजनः परमं साम्यमुपेति (मुंडकोप. 3/3)।
कृतकर्मनाश: कर्मक्षये भाति स तत्त्वतोऽन्यः (श्वेताश्वतरोप. 6/4)। (ख) णिज्जरियसव्वकम्मो...पावदि सुक्खमणंतं (मूलाचार- 749)।
___ कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ (दशवैकालिक- 4/24)। 27. (क) श्वेताश्वतर उप. 6/7-8, 11,16,19 (ख) उत्तराध्ययन- 29/1, 36/66-67,
सव्वण्हू सव्वलोयदरसी य (मोक्षप्राभृत- 35)। केवलणाणुवत्ता जाणंती सव्वभावगुणभावे। - - पासंति सव्वओ खलु केवलदिठ्ठीहिं णंताहिं (औपपातिक- 195/12)। णट्टकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा (द्रव्यसंग्रह- 51)।
परमात्मा सकलविषयविषयात्मा (पुरुषार्थसिद्ध्युपाय- 223-24)। 28. तुलना : जैन मत (जण्णाणवसं किरिया मोक्खणिमित्तं परंपरया कुन्दकुन्दकृतद्वादशा
नुप्रेक्षा, 57)। 29. क्रियानिष्पाद्यस्य तु मोक्षस्य अनित्यत्वं प्रसञ्जयति (अमलानन्द-कृत वेदान्त कल्पतरु,
1/1/4)।
अक्रियार्थत्वेऽपि ब्रह्मस्वरूपविधिपरा: वेदान्ताः भविष्यन्ति (भामती,1/1/4)। 30. द्र. सांख्यकारिका, का. 10,
सक्रिय परिस्पन्दवत्। तथा हि बुद्ध्यादयः उपात्तमुपात्तं देहं परित्यजन्ति, देहान्तरं चोपाददते
इति तेषां परिस्पन्दनम् (सांख्यतत्त्वकौमुदी, का. 10)। 31. प्रकृतिक्षोभात् सृष्टिश्रवणेन प्रकृतेरपि कर्मवत्तया.... (सांख्यसूत्र 1/24 पर प्रवचनभाष्य) 32. परिणामलक्षणया तु क्रिया सक्रियौ एव, अन्यथा वस्तुत्वविरोधात्
(तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-5/7)। द्रव्यार्थिकगुणभावे पर्यायार्थिकप्राधान्याद् सर्वे भावाः उत्पादव्ययदर्शनात् सक्रिया
अनित्याश्च (राजवार्तिक-5/7/25)1 33. से आयावाई, लोयावाई, कम्मावाई, किरियावाई (आयारो, 1/5) 34. द्र. धवला-9/4,1, 45/203, 9/4, 1, 45, 207, 1/1, 1, 2/107, गोम्मटसार,
कर्मकाण्ड- 884-885, 877, तत्त्वार्थराजवार्तिक- 1/20/12 35. तत्र न कर्तारं विना क्रियासम्भवः इति तामात्मसमवायिनीं वदन्ति, तच्छीलाश्च ये ते
क्रियावादिनः। ते पुनरात्मादि-अस्तित्वप्रतिप्रत्तिलक्षणा:
(नन्दी सूत्र, हरिभद्रीयवृत्ति, पृ. 100)। 36. द्र. भगवई, 9/156-234, ‘क्रियमाण कृत' का समर्थन आ. अकलंक-कृत राजवार्तिक
(1/33/7) में प्राप्त होता है। 37. य उपदेशः क्रियाप्राधान्यख्यापनपर: स नयो नाम क्रियानयः इत्यर्थः (दशवैकालिक
नियुक्ति, हरिभद्रीयवृत्ति- 149 व 371, पृ. 81 व 286)।
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