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________________ नैमित्तिक फल कुछ कर्म निमित्त पाकर फल देते है। जैसे- पुद्गल हेतुक उदय-किसी ने पत्थर फेंका, चोट लगी, उससे असाता का उदय हो गया, यह असातवेदनीय का पुद्गल हेतुक विपाक उदय है। किसी ने गाली दी, क्रोध बढ़ गया, यह क्रोध वेदनीय पुद्गलों का सहेतुक विपाक उदय है। भोजन किया, पाचन नहीं हुआ, अजीर्ण हो गया, उससे सम्बन्धित्त बीमारी हो गई। यह असातवेदनीय का विपाक उदय है। शराब पीने से नशा छा गया। इस प्रसंग में ज्ञानावरण का विपाकोदय शराब परिणमन से हुआ। इस प्रकार अनेक हेतुओं से विपाकोदय होता है। हेतुओं का संयोग न हो तो उन कर्मों का विपाक रूप में उदय नहीं होता। उदय का दूसरा प्रकार है- प्रदेशोदय। इसमें कर्म-फल का स्पष्ट अनुभव नहीं होता। यह कर्म वेदन की अस्पष्टानुभूति की दशा है। जो कर्म बंध होता है, वह भोगा अवश्य जाता है। गौतम ने पूछा- भंते ! किये हुए कर्म भोगे बिना छूट नहीं सकते। क्या यह सत्य है? महावीर-हां गौतम ! सत्य है। गौतम- भंते ! कैसे ? महावीर- गौतम ! मैंने दो प्रकार के कर्म बतलाएं है - प्रदेश कर्म 91 और अनुभाग कर्म।92 जो प्रदेश-कर्म हैं, वे नियमतः भोगे जाते हैं। जो अनुभाग कर्म हैं, वे अनुभाग रूप में कुछ भोग में आते हैं, कुछ भोग में नहीं आते हैं। 93 बंध के प्रकार कर्म पुद्गलों के ग्रहण को बंध कहा जाता है। बंध चार प्रकार का होता है। प्रकृति, स्थिति, अनुभाग एवं प्रदेश। प्रकृति बंध- प्रकृति का सम्बन्ध कर्म पुद्गलों के स्वभाव से है। 94 जैसे-नीम का स्वभाव कटु है। गुड़ का स्वभाव मधुर है। इसी प्रकार ज्ञानावरण आदि कर्मों का अपना-अपना स्वभाव है। कर्मों का स्वभाव निर्धारण प्रकृति बंध कहलाता है। स्वभाव, प्रकृति, शील, आकृति, गुण, धर्म,शक्ति, लक्षण आदि सभी एकार्थक हैं। 95 अमुक कर्म-पुद्गल 206 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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