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85. उत्तराध्ययन; 33/11 86. प्रज्ञापना ; 23/1/288 टीका 87. स्थानांग ; 2/4/105 टीका, (ख) नवतत्त्व प्रकरणम् ; 74 88. उत्तराध्ययन; 33/13 89. प्रस्तुत कर्म का उदय सूर्य - मण्डल के एकेन्द्रिय जीवों में होता हैं। उनका शरीर शीत होता
है पर प्रकाश उष्ण होता हैं। 90. देव के उत्तर वैक्रिय शरीर में से, व लब्धिधारी मुनि के वैक्रिय शरीर से तथा चांद, नक्षत्र, ___तारागणों से निकलने वाला शीत प्रकाश। 91. प्रज्ञापना; 23/2/293 92. गोम्मटसार; (कर्म काण्ड) 22 93. कर्म विपाक; पृ. 58,105 94. प्रज्ञापना; 23/1/288 टीका 95. तत्त्वार्थ सूत्र; 8/13 भाष्य 96. ठाणं; 2/4/105 टीका 97. उत्तराध्ययन; 33/14 - गोयं कम्मं तु दुविहं, उच्च नियं च आहियं। 98. उत्तराध्ययन; 33/14 उच्चं अट्ठविहं होई एवं नीयं पि आहियं। 99. प्रज्ञापना ; 23/1/292, 29/2/293 100. पंचाध्यायी; 2/1007 101. ठाणं; 2/4/105 टीका, (ख) उत्तराध्ययन; 33/15
दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा।
पंचविहमन्तरायं, समासेण वियाहिय।। 102. स्थानांग; 2/431 103. उत्तराध्ययन; 33/19 104. गोम्मटसार ; (कर्म काण्ड) 9 105. एथीकल स्टडीज; पृ. 53 106. भगवती; 1/2/54 107. तत्त्वार्थ सूत्र; 6/5
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया