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________________ 4. मनः पर्यव ज्ञानावरण- -दूसरों के विचारों या मनोभावों को जानने की अतीन्द्रिय ज्ञानात्मक क्षमता को प्रभावित करने वाले कर्म पुद्गल । 5. केवल ज्ञानावरण- मूर्त, अमूर्त दोनों प्रकार के पदार्थों का समग्रता से बोध करने वाली अतीन्द्रिय ज्ञानात्मक क्षमता को प्रभावित करने वाले कर्म पुद्गल । विस्तार की दृष्टि से कहीं-कहीं ज्ञानावरणीय कर्म के दस भेद भी उपलब्ध होते हैं(1) श्रवण शक्ति का अभाव। (2) श्रवण से उपलब्ध ज्ञान की अनुपलब्धि । ( 3 ) दृष्टि - शक्ति का अभाव । (4) दृश्य ज्ञान की अनुपलब्धि। (5) गंध ग्रहण शक्ति का अभाव। (6) गंध सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि । (7) स्वाद ग्रहण शक्ति का अभाव। (8) स्वाद सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि । (9) स्पर्श - क्षमता का अभाव। (10) स्पर्श सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि ज्ञानावरण कर्म की हेतुभूत क्रियाएं स्थूलरूप में छः प्रकार की हैं (1) ज्ञान - प्रत्यनीकता - ज्ञान या ज्ञानी से प्रतिकूलता रखना। (2) ज्ञान - निह्नव - ज्ञान अथवा ज्ञानदाता का अपलपन करना यानी ज्ञानी को कहना कि वह ज्ञानी या विषय का मर्मज्ञ नहीं है। (3) ज्ञानान्तराय - ज्ञान प्राप्त करने में अन्तराय डालना। (4) ज्ञान-प्र - प्रद्वेष - ज्ञान या ज्ञानी से द्वेष रखना । - विसंवाद- ज्ञान या ज्ञानी के वचनों में विसंवाद यानी विरोध दिखाना। (5) ज्ञान ( 6 ) ज्ञान - आशातना - ज्ञान अथवा ज्ञानी की आशातना करना । क्रिया और कर्म - सिद्धांत 161
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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