________________
दोनों का परस्पर क्या सम्बन्ध है ? प्रस्तुत प्रसंग में इन्हें समझना उपयोगी होगा। भाव सरल और प्राथमिक मानसिक प्रतिक्रिया हैं। जब कि संवेग जटिल प्रतिक्रिया है।
__ प्लेटों ने संवेग को सुख तथा दु:ख के रूप में माना था। अरस्तु ने संवेग को सुख प्राप्त करने तथा दुःख दूर करने का साधन समझा। इस प्रकार अधिकांश प्राचीन यूनानी दार्शनिकों ने संवेग को ह्रदय से सम्बन्धित घटना मानने पर बल दिया। अत: 18 वीं शताब्दि तक के दार्शनिक संवेग को ह्रदय से संबंधित विषय मानते थे। आगे चलकर स्वचालित तंत्रिका तंत्र तथा अन्त: स्रावी ग्रंथियों को भी संवेग का आधार माना जाने लगा है। भाव का जगत् अव्यक्त हैं, सूक्ष्म हैं। संवेग प्रत्यक्ष है। लेश्या के स्पंदनों का जब चित्त के साथ संयोग होता है तब भाव तंत्र का निर्माण होता है। वस्तुत: भाव और संवेग का इतना संश्लेषण है कि इन्हें विभक्त करना आसान नहीं है। ___ संवेग मनुष्य को सुख - दुःख की स्थिति में ले जाते हैं। भाव पीछे रह जाते हैं। भाव आत्मगत होते हैं। संवेदना के बिना भाव की अनुभूति नहीं होती। जैसे-हमने कोई संवाद सुना। यह सुनना संवेदना है। परन्तु संवाद सुनने के बाद जो सुख - दुःख का अनुभव होता है, वह भाव है। यह मानसिक अवस्था है।
हमारे मन के तीन पहलु हैं- ज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) क्रियात्मक (Conative)। किसी भी मानसिक प्रक्रिया में तीनों में से कोई न कोई पक्ष जुड़ा हुआ होता है। भाव तीव्र बनता है तब संवेग की स्थिति समक्ष आती है। क्रोध, लोभ, भय, वासना, घृणा, माया आदि सवेग हैं। इनके मूल आशय हैं- राग-द्वेष। द्वेषाशय की उत्तेजना से क्रोध उभरता है। रागाशय की उत्तेजना से माया, लोभ, वासना, आदि उभरते हैं। राग -द्वेष अप्रत्यक्ष हैं।
संवेग हमारे व्यवहार के शक्तिशाली प्रेरक होते हैं। क्रोधादि संवेदनाएं औदयिक भाव हैं। प्रसन्नता, आनन्द, सुखैषणा क्षयोपशम भाव हैं। संवेग की स्थिति में स्वतः संचालित नाड़ितंत्र, वृहद्मस्तिष्क और हाईपोथेलेमस विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। संवेग की समाप्ति के बाद उनका प्रभाव कुछ समय के लिये चेतना पर बना रहता है। उस स्थिति में व्यक्ति मानसिक दृष्टि से जो अनुभव करता है, उसे मनोविज्ञान की भाषा में मनोदशा कहा जाता है। मनोदशा का कालमान अधिक है तो भावों की तीव्रता कम हो जाती है। संवेग का कालमान कम होता है तब भावों की तीव्रता बढ़ जाती है। इन दोनों में परस्पर अन्तःक्रिया का संबंध है।
क्रिया और कर्म - सिद्धांत
153