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उपशम केवल मोहनीय का होता है, शेष कर्मों का नहीं। क्षय सभी कर्मों का होता है। क्षयोपशम घाति कर्मों का ही होता है। पारिणामिक भाव प्राणी मात्र में समान रूप से विद्यमान रहता है।
स्वामित्व और भाव
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क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक इन तीन भावों के अधिकारी भव्य - अभव्य दोनों हैं । औपशमिक तथा क्षायिक केवल भव्य में पाये जाते हैं। केवल ज्ञान होने पर क्षायोपशमिक भाव ही क्षायिक भाव में विकसित हो जाता है । घाती कर्मों का क्षय हो जाने पर उपशम या क्षयोपशम का अस्तित्व नहीं रहता। मुक्त दशा में औदयिक भाव की सत्ता समाप्त हो जाती है। वहां क्षायिक एवं पारिणामिक दो ही भाव रहते हैं। काल - दृष्टि और भाव
कल की दृष्टि से भावों के चार विकल्प बनते हैं
1. अनादि-निधन भाव - अभव्य का असिद्धत्व, धर्माधर्मादि की गति, स्थिति, अवगाहना, परिणमन हेतुत्व।
2. अनादि - सान्त भाव- भव्य जीव का असिद्धत्व, भव्यत्व, मिथ्यात्व, असंयम आदि।
3. सादि - अनन्त भाव- केवलज्ञान, केवल दर्शन आदि ।
4. सादि - सान्त भाव- सम्यक्त्व से पतित हो पुनः मिथ्यात्व में चला जाना।
इन पांच भावों के अतिरिक्त आगम साहित्य में एक भाव और उपलब्ध है। वस्तुतः सान्निपातिक भाव स्वतंत्र होकर अनेक भावों के संयोग से निष्पन्न जीव दशा है।
इसके 26 विकल्प होते हैं
152
संयोग
तीन के संयोग से
चार के संयोग से
पांच के संयोग से
10 विकल्प
10 विकल्प
5 विकल्प
1 विकल्प
भाव और संवेग
मनोविज्ञान में भाव और संवेग शब्द बहु चर्चित हैं। संवेग क्या हैं ? भाव क्या है ?
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया