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________________ ७८ आगम-सम्पादन की यात्रा दशवैकालिक सूत्र का यह कार्य साध्वीश्री रतनकुमारीजी को सौंपा गया। उन्होंने अपना कार्य श्रावण कृष्णा नवमी को प्रारम्भ किया और अपनी चार सहयोगी साध्वियों के साथ 'दत्तावधान' से कार्य करती हुई भाद्रव कृष्णा तीज को (२५ दिनों में) सारा कार्य सम्पन्न कर आचार्यप्रवर को सौंप दिया। शब्दों के चयन का आधार प्रोफेसर अभयंकर का अंग्रेजी अनुवाद वाला ‘दसवेआलिय सुत्त' था। सर्वप्रथम वह प्रति प्रामाणिक मालूम हुई। इस चतुर्मास में लगभग पचास साधु-साध्वी इस कार्य में लगे थे और आचार्यप्रवर की प्रेरणा और साधुसाध्वियों के अदम्य उत्साह से प्रायः बत्तीस सूत्रों की 'अकारादिअनुक्रमणिका' तैयार हो गई। चतुर्मास के बाद कार्य की गति कुछ मन्द हुई। इसका मुख्य कारण था कि आचार्यप्रवर कई एक संघीय कार्यों में अति व्यस्त रहने लगे यह आवश्यक भी था। परन्तु साथ-साथ चिन्तन-मनन चलता रहता और कार्य को गति देने के लिए प्रयास किया जाता। उन दिनों आचार्यप्रवर सरदारशहर में थे। एक जर्मन विद्वान् डॉक्टर रोथ जैन दर्शन संबंधी कई जिज्ञासाओं को लेकर आये। आगम-कार्य को देख वे अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कई सुझाव भी दिये। उनके सुझाव सुन्दर थे। कार्य में मोड़ आया और कार्य पुनः द्रुतगति से चलने लगा। दशवैकालिक का पाठ-संशोधन सबसे बड़ी कठिनाई पाठ-संशोधन की थी। जितने आदर्श उतने ही पाठ। एक निर्णय पर पहुंचना अति कठिन था। उस समय तक अगस्त्यसिंह मुनि की चूर्णि प्राप्त नहीं हो सकी थी। परन्तु आचार्यश्री के पास अन्यान्य आदर्शों से पाठ-संशोधन का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया। 'पाठ-संशोधन' के ग्रुप में कार्य करने वाले पांच-पांच साधुओं को आचार्यश्री ने अपने पास बुला लिया। सभी आचार्यश्री के सामने एक-एक आदर्श ले बैठ जाते। एक साधु मूल-पाठ का उच्चारण करता और सभी साधु अपने-अपने आदर्शों से उसका मिलान करते । जहां-जहां फर्क आता वहां-वहां अन्वेषण किया जाता–अर्थ की दृष्टि से उसका मिलान होता और सारे पाठान्तरों को अलग-अलग नाम से अंकित कर लिया जाता। मुख्यरूप से चूर्णिकार जिनदास महत्तर और टीकाकार आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा सम्मत पाठों को विशेष महत्त्व देते। कभी-कभी चार-पाच श्लोकों में ही सारा समय लग
SR No.032420
Book TitleAgam Sampadan Ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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