________________
( १० )
की बूंदों से निष्पन्न अलंकरण है । अवस्था प्राप्त होने पर आज भी उनमें कार्य करने की दक्षता विद्यमान है । आगम-कार्य के साथ-साथ उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ
दो सौ से अधिक पुस्तकों का भी सम्पादन किया है । उनकी श्रमशीलता का उल्लेख करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने एक बार मुनिश्री के लिए कहा था - 'साहित्य - जगत् में मुझे प्रकाश में लाने का श्रेय मुनि दुलहराजजी को जाता है । यदि वे न होते तो संभव है कि मेरा साहित्य इस प्रकार बाहर आता या नहीं ।'
ऐसे श्रमशील मुनि ने आगम-कार्य करने वालों के लिए एक 'गाइड बुक' प्रस्तुत की है- 'आगम- सम्पादन की यात्रा'। इसमें पैंतीस निबन्धों को समाविष्ट किया गया है। जब से आगम का कार्य प्रारम्भ हुआ तब से उन्होंने जो कुछ जाना, पढ़ा या सुना उसको अपनी लेखनी से निबद्ध कर पाठकों के सामने परोसा है । मुझे आशा है कि आगमों पर रिसर्च करने वालों के लिए प्रस्तुत पुस्तक अतीत के आलोक में अच्छी-खासी जानकारी देगी और भविष्य में उनका पथ प्रदर्शन करेगी, इसी मंगलभावना के साथ
I
तेरापंथ भवन, श्रीडूंगरगढ़ ५ दिसम्बर २०१०
-मुनि राजेन्द्रकुमार