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८. लोगस्स - आध्यात्मिक पदाभिषेक
गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी एक ऐसे महातपस्वी, महामनस्वी, महायशस्वी आचार्य थे जिनकी वाणी में ओज और आँखों में अनंत की खोज थी। उनकी पारदर्शी प्रज्ञा ने लोगस्स के शक्तिशाली मंत्रों का आध्यात्मिक पदाभिषेक कर अतीन्द्रिय चेतना संपन्न आचार्य महाप्रज्ञ में अपनी संपूर्ण ऊर्जा को संग्रहित व प्रेषित कर उनकी प्रज्ञा के द्वार खोल दिये। संघ को आचार्य महाश्रमण जैसे महातपस्वी, महासाधक, महाप्रतापी आचार्य की उपलब्धि भी उनकी पैनी दृष्टि का सुपरिणाम है।
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भारतीय परम्परा में अभिषेक विधि का प्रचलन बहुत पुराना रहा है, फिर चाहे वह लौकिक परम्परा रही हो या अलौकिक परम्परा । शीर्षस्थ पद पर प्रतिष्ठित किये जाने वाले व्यक्ति के लिए अथवा शीर्षस्थ पुरुष के लिए विधिपूर्वक की जाने वाली क्रिया अभिषेक कहलाती है । प्राचीन समय में जब राजाओं, महाराजाओं के राज्याभिषेक का मांगलिक अवसर होता तो उस समय के रीति-रिवाजों के अनुसार अनेक तीर्थों तथा पवित्र नदियों का पानी मंगल कलशों में भरकर लाया जाता, उस पानी को विविध प्रकार से सुगंधित द्रव्यों से सुवासित किया जाता और फिर राज सिंहासन पर बैठने वाले राजा का उस पानी से मंत्रोच्चारणपूर्वक अभिषेक किया जाता यह विधि अभिषेक कहलाती थी ।
जैन परम्परा में इस पद्धति का प्रकारान्तर से निर्वहन होता रहा है । जब कभी वर्तमान आचार्य के सामने अपने उत्तराधिकारी को आचार्य बनाने का प्रसंग आता है तब वे अपने शिष्य को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए उनका विधि पूर्वक पदाभिषेक करते हैं ।
'अभिषेक' - शब्दार्थ'
'अभिषेक' शब्द का अर्थ अभिधा और लक्षणा- दोनों प्रकार से किया जा सकता है । 'अभिधा वह शब्द शक्ति है जो केवल वाच्यार्थ या अक्षरार्थ को
लोगस्स - आध्यात्मिक पदाभिषेक / ६७