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३. बहस और विवाद से बचाव ४. दुःख में भी सुख की खोज का लक्ष्य ५. इच्छाओं का अल्पीकरण ६. प्रतिकूलताओं से अप्रभावित रहने का प्रयास ७. जीवन में व्रतों का स्वीकरण ८. आवेग तथा आवेश पर नियंत्रण ६. गलत धारणाओं का अपनयन १०. देखा देखी से बचाव ११. स्वावलंबी बनने का अभ्यास चित्त शुद्धि के उपाय • अच्छे विचारों का उदय • पवित्र लक्ष्य की धारणा • ऊर्जा क्षय के कारणों से बचाव
नियमित एकाग्रता का अभ्यास • मैत्री साधना का अभ्यास • गलत विचारों की प्रेक्षा • सात्विक लोगों का संपर्क
मांसपेशियों का शिथिलीकरण (कायोत्सग) • दिमाग का सलक्ष्य विश्राम • सात्विक शुद्ध भोजन चित्त समाधि का शोधक यंत्र : अर्हत शरण
सामान्यतः समाधि का आशय चित्त की एकाग्रता (चंचलता का अभाव) से है। चित्त की एकाग्रता मन की शांति और सुख को उत्पन्न करती है। एक सुखी व्यक्ति दूसरों को भी सुखी बनाता है। उसके कार्यों की गुणवत्ता क्रमशः बढ़ती ही जाती है। वह स्वाभाविक रूप से बहुधा अक्षय उन्नति को प्राप्त होता है। ऐसा नहीं है कि ऐसे व्यक्ति को परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है परंतु ऐसी घड़ियों का सामना करने की शक्ति और साहस का उसमें कभी अभाव नहीं होता। वह जिस परिवार का मुखिया होता है, वहां व्यवस्था, अनुशासन, सुख, सद्संस्कार और मानवीय संबंधों की सौरभ रहती है। समाज ऐसे व्यक्तियों को अच्छे जीवन की मिशाल के रूप में देखता है। वास्तव में संसार को वही व्यक्ति जीतता है जो अपने मन को जीतता है। चित्त की एकाग्रता के लिए जीवन में आवश्यकताओं की
समाहिवर मुत्तमं दितु-१ / २१