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समाधि के चार साधन हैं
१. श्वास संयम २. वैराग्य
. ३. एकाग्रता ४. प्रसन्न्ता श्वास संयम द्वारा संवेदन नियंत्रित होते हैं संवेदन नियंत्रण से वैराग्य का प्रस्फुटन होता है। विचार नियंत्रण से एकाग्रता बढ़ती है। संवेग नियंत्रण से प्रसन्नता उपलब्ध होती है।
समणी कुसुमप्रज्ञाजी के संसार पक्षीय पिताजी श्री नेमीचंदजी मोदी निम्नोक्त पद्य को अन्तर जप की तरह जपते रहते थे।
सहजे सहजे सहजानंद, अन्तर्दृष्टि आत्मानंद।
जहाँ देखू तहाँ परमानंद, सहज छूटे विषयानंद ॥ सामान्यतः समाधि और सुख को एक मान लिया जाता है पर दोनों में अन्तर है जिसको निम्न प्रकार से समझा जा सकता है
सुख तन, मन, धन से संबंध रखता है, समाधि आत्मिक होती है। आत्मिक समाधि प्राप्त करने वाला तन एवं मन के दुःखों में भी सुख का अनुभव करता है। • सुखी बनने के लिए आदमी धन कमाता है, क्या केवल धन से आदमी सुखी . बनता है? • सुखी बनने के लिए आदमी मकान बनाता है, क्या केवल मकान बनाने से
आदमी सुखी बनता है? • सुखी बनने के लिए आदमी उच्च शिक्षा प्राप्त कर डिग्री प्राप्त करता है,
क्या ऐसा करने से आदमी सुखी बनता है? सुखी बनने के लिए आदमी कपड़े पहनता है, मोटर कार खरीदता है, चुनावों में खड़ा होता है, अपने नाम पर धर्मशाला आदि बनाता है, गरीबों को दान देता है, क्या इन सबसे आदमी सुखी बनता है?-ये सब एक गृहस्थ को सुखी बनाने के साधन हैं, सुख के मानदण्ड हैं परन्तु केवल इनसे ही आदमी सुखी नहीं बनता वह सुखी तब बनता है, जब वह यह सोचता है कि सुख, संयम, त्याग, स्वास्थ्य, शांति, संतोष, सेवा, विसर्जन, धर्म, सत्कर्म और निस्पृहता में है। ऐसा चिंतन उसे सुख से समाधि की दिशा में
प्रस्थित करता है। ध्यान और समाधि
आत्मा के द्वारा आत्मा की प्रेक्षा करें-यह जैन आगमों में विवर्णित धर्म
समाहिवर मुत्तमं दितु-१ / १६