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बोधि की प्राप्ति कब?
बोधि प्राप्ति का आन्तरिक कारण अनंतानुबंधी (तीव्रतम) क्रोध, मान, माया, लोभ, सम्यक्त्व-मोहनीय, मिथ्यात्व-मोहनीय और सम्यक्त्व मिथ्यात्व मोहनीय-मोह कर्म की इन सात प्रकृतियों का उपशम होने से उपशम बोधि, क्षय होने से क्षायिक बोधि और कुछ का उपशम तथा कुछ का क्षय होने से क्षयोपशम बोधि की प्राप्ति होती है।
इन सात प्रकृतियों का उपशम आदि होने का बाह्य कारण सामान्यतः द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव है। उसमें द्रव्य में तो साक्षात् तीर्थंकर को देखना आदि प्रधान है, क्षेत्र में समवसरणादिक प्रधान है, काल में अर्द्धपुद्गल परावर्तन संसार भ्रमण शेष रहे तब तथा भाव से यथाप्रवृत्ति करण आदि की प्रक्रिया है।*
जीव पहले तो अकाम निर्जरा के द्वारा ६६ कोटाकोटि सागरोपम की मोहनीय कर्म की स्थिति को तोड़ता है उसके बाद सम्यक्त्व प्राप्त करता है। सम्यक्त्व प्राप्ति के समय भी उसके एक कोड़ाकोड़ सागरोपम लगभग स्थिति के कर्म होते हैं।
हृदय चक्र और मनः चक्र
__ एक चक्र सीधी रेखा में है और एक चक्र हृदय के सामने है। एक का नाम हृदय चक्र और दूसरे का नाम है अनाहत चक्र । आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के अनुसार अनाहत चक्र (आनंद-केन्द्र) और मनः चक्र-दोनों एक ही हैं। उन्होंने लिखा है-'घट-घट में राम'-लोग जो यह बात कहते हैं यह वही घट है। मैंने स्वयं इस पर ध्यान किया है और यह अनुभव भी किया है कि कषाय शांति के लिए यह सबसे अच्छा स्थान है।६ आनंद-केन्द्र (हृदय का परिपाश्व) बहुत चामत्कारिक है। यहां से प्राप्त होने वाला आनंद शरीर के रसायनों और चेतना के योग से निष्पन्न होता है अतएव इस केन्द्र की सक्रियता से निम्न गुण प्रकट होते हैं१. सहिष्णुता का विकास २. परिस्थितियों को झेलने की क्षमता का विकास ३. दीर्घ साधना के पश्चात् हर्ष और शोक से परे एक नई चेतना (आनंद) की जागृति। आचार्य हेमचन्द्र ने इस चक्र की विशेषता का उल्लेख करते हुए लिखा है
ततोऽविद्या विलीयन्ते, विषयेच्छा विनश्यति । विकल्पा विनिवर्तन्ते, ज्ञानमंतर्विजृम्भते ॥
* यथाप्रवृत्तिकरण आदि की विशेष जानकारी के लिए देखें, “स्वागत करें उजालो का" पृ. १०२ से १०४ । १० / लोगस्स-एक साधना-२