________________
ज्यों-ज्यों जाप बढ़ा, आकाश का रंग बदला । विपत्ति के बादल बिखरे । ससम्मान भंडारीजी को दरबार - ए - जोधपुर में हाजिर होने का आमंत्रण मिला । मघवागणी जैसे देव -पुरुष का वचन खाली जाता भी तो कैसे ?
बातों हुई महाराज जसवंतसिंहजी सवारी लेकर जा रहे थे । एक हवेली के गोखे में पहने-ओढ़े पांचों भंडारी पुत्र सवारी देखने खड़े थे। महाराज की नजर पड़ी अनायास मुँह से निकला - ये कुंवर कौन से ठिकाने के हैं। पोकरण ठाकर साहब के हाथ एक तजबीज लगी। वे खवासी की नियुक्ति में दरबार के पीछे बैठे चंवर ढोल रहे थे। उन्होंने कहा - बड़ो हुकम ! ये कुंवर हैं हुजूर के परम उपकारी भंडारी बादरमलसा के | याद है सरकार जब बड़े दरबार नाराज हो गये थे तब आप किले से उतर पधारे थे । भंडारी - सा ने आपको हवेली में छिपाकर रखा । दरबार से फिर मेल कराया। एक ही सांस में पोकरण ठाकर-सा सब कुछ कह गये ।
महाराज जसवंतसिंहजी को वह दिन याद आया । बापू ने किले से उतरने को कह दिया । मैं गुस्से में घर छोड़ निकल पड़ा । सब साथी किन्नी काट गये । जागीरदारियों की हवेलियों पर फिरता फिरा । किसी ने आश्रय नहीं दिया। हजार बहाने बनाये । रुलता-रुलता नौ कोटि मारवाड़ का भावी मुकुट मैं, नेनीजान के बंगले रातानाड़ा पहुँचा सोचते-सोचते दरबार जसवंतसिंहजी के पसीना छूट गया । आँखों के आगे अंधेरी आ गई । वह भी एक दिन था ।
भंडारीजी ने इज्जत रखी। मुझे अपनी हवेली लाये । आश्वासन दिया । मेहनत की। भाग-दौड़ कर ज्यों त्यों बापू को मनाया। मुझे दूसरी रात किले तक पहुँचाया। बाप-बेटे का रंज मिटाकर मेल-मिलाप कराया। वाह ! वाह ! भंडारीजी वाह! जी की जोखिम उठाकर सांप के मुँह में हाथ डाला । उस दिन भंडारीजी ना होते तो मैं कहाँ होता । आज यह दिन उन्हीं का दिया हुआ है । सोचते-सोचते दरबार जसवंतसिंहजी का कलेजा भर आया । धत् । तेरे जैसा भी कोई निकृष्ट होगा जसवंतसिंह ! भूल गया ... ।
भंडारी कुंवरों को मुक्त कर तुरंत जाटावास पहुँचाया। भंडारी - सा को बाइज्जत दरबार में हाजिर होने का आमंत्रण दिया । भंडारीजी पहुँचे । दरबार में उन्हें कुर्सी दी गई। महाराज जसवंतसिंहजी गद् गद् होकर बोले- नौ कोटि मारवाड़ का मुझे यह आसन दिलवाने वाले भंडारीजी ! आज के बाद आप का उपराठा होऊं तो माताजी की आणं ।"
आभार से भारी भंडारीजी अभी भी हाथ जोड़े खड़े-खड़े मन ही मन रटे जा
रहे थे
१४८ / लोगस्स - एक साधना - २