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एक्यूप्रेशर पद्धति ने 'सात सौ केन्द्र' खोज लिए हैं। चेतना के ये सारे केन्द्र हमारे शरीर में हैं। हठ-योग के आचार्यों ने 'सात सौ' चक्रों का, सश्रुत संहिता में 'एक सौ सत्तावन' मर्म स्थानों का, प्रेक्षा ध्यान में 'तेरह चैतन्य केन्द्रों का निर्देश दिया गया है। मानव शरीर में कुल ‘सात सौ' बड़ी ग्रंथियां भी होती हैं, जिनसे शरीर के उपयोग के लिए हार्मोन्स बनते हैं।
प्रत्येक चक्र एक स्विच के समान है, जो मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को जाग्रत करता है। अधिकतर व्यक्तियों के ये अतीन्द्रिय केन्द्र सुषुप्त और निष्क्रिय रहते हैं। योगाभ्यास करते समय इन चक्रों पर ध्यान करने से अथवा मंत्र जप, ध्यान आदि करने से शक्ति को इन चक्रों की ओर बहने की प्रेरणा मिलती है। इससे इन चक्रों को सक्रिय बनाने में सहायता मिलती है। ये चक्र क्रियाशील होकर मस्तिष्क के सुप्त क्षेत्रों और अतीन्द्रिय एवं मानसिक शरीरों में उनसे संबंधित क्षमताओं को जागृत करते हैं। इससे अभ्यासी चेतना के उन उच्च स्तरों की अनुभूति प्राप्त करता है, जो सामान्यतः उसकी पहुँच के परे होते हैं।
सात मुख्य चक्र हैं, जो मेरुदण्ड के मध्य से होकर प्रवाहित होने वाली सुषुम्ना नाड़ी में स्थित हैं। सुषुम्ना मूलाधार से निकलती है और सिर के शीर्ष पर समाप्त होती है। चक्रों का संबंध नाड़ियों के जाल से है। ये नाड़ियां तंत्रिकाओं के समान किन्तु उनसे अधिक सूक्ष्म होती हैं। चक्रों को प्रतीकात्मक रूप से कमल की पंखुड़ियों के रूप में दर्शाया जाता है। प्रत्येक चक्र की पंखुड़ियों की संख्या और रंग निर्धारित होता है। कमल आध्यात्मिक जीवन की उन तीन अवस्थाओं का प्रतीक है, जिनसे होकर साधक को गुजरना पड़ता है। ये तीन अवस्थाएं हैं-अज्ञान, जिज्ञासा और आत्म-साक्षात्कार। यह चेतना की निम्नतम अवस्था से उच्चतम अवस्था तक के आध्यात्मिक विकास का परिचायक है।
बीज मंत्रों के साथ अंकित कमल-दल, चक्रों एवं नाड़ियों से सम्बन्धित अतीन्द्रिय शक्ति के विविध रूपों को दर्शाते हैं। प्रत्येक चक्र के भीतर एक यंत्र होता है जो उससे संबंधित तत्त्व एवं बीज मंत्र का ज्यामितीय प्रतीक होता है। यंत्र के भीतर उसका एक इष्ट देवता होता है, जो देवी सत्ता के एक विशिष्ट स्वरूप का प्रतीक है। साथ ही उस देवता का पशु रूप में एक वाहन भी होता है, जो उस चक्र विशेष से सम्बन्धित अन्य अतीन्द्रिय पक्षों को दर्शाता है। चक्रों का वर्णन एवं तीर्थंकर जप मूलाधार चक्र
यह सबसे नीचे का चक्र है इसलिए इसे मूलाधार या आधार चक्र कहते हैं। १२४ / लोगस्स-एक साधना-२