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जैन आगमों का वाचन करने वाले मुनि अध्ययन (स्वाध्याय) के साथ-साथ उपधान (तप) करते हैं। नमस्कार महामंत्र का जप व स्मरण कर आगम वाचन प्रारंभ करते हैं, जिसका उद्देश्य है आगम ज्ञान का सम्यक् ग्रहण और आगम वाचन में निर्विघ्नता। प्रत्येक आगम के लिए अलग-अलग तप उपधान निश्चित हैं।
प्राचीन काल में चातुर्मास प्रवेश के दिन साधु-साध्वियां तप व मंत्र जप किया करते थे और वर्तमान में भी यह क्रम कुछ अंशों तक चल रहा है। पाप विशुद्धि के प्रायश्चित के रूप में भी आचार्य शिष्य को तप व स्वाध्याय का निर्देश देते हैं।
तप के साथ लोगस्स के जप अथवा कायोत्सर्ग की अनेक विधियों का उल्लेख गीतार्थ मुनियों द्वारा कथित है। यद्यपि निम्नोक्त विधियां आगमोक्त नहीं हैं पर लक्ष्य आत्मशुद्धि ही है। १. वृहद ज्ञान पंचमी तप'-(बड़ी पंचमी) • हेतु
ज्ञान प्राप्ति समय कार्तिक शुक्ला पंचमी से प्रारंभ (प्रत्येक मास की शुक्ल पंचमी) अवधि पांच वर्ष छह मास मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं नमो नाणस्स तप चोविहार या तिविहार उपवास क्रिया प्रारंभ करें उस दिन ५१ लोगस्स का कायोत्सर्ग और ३१ वंदना प्रति उपवास में मंत्र की २१ माला, ५ लोगस्स का कायोत्सर्ग और ५ वंदना। उभयकाल सामायिक व प्रतिक्रमण करना (सुनना)। यदि उपवास के दिन क्रिया विधि पुरी न हो सके तो पारणे से पूर्व पूरी करनी होती है। बन सके तो पौषध करना चाहिए। अंतिम दिन के उपवास में प्रथम दिन के उपवास वत् क्रिया करनी होती है।
लोगस्स और तप / ६७