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जिज्ञासा की-“भंते! जीवन का सार क्या है?" सभी अर्हन्त भगवन्तों ने एक ही शब्द में समाधान देकर गागर में सागर भर दिया। वह शब्द था-"आत्मज्ञान"।
अध्यात्म का आधारभूत तत्त्व है आत्मा। आत्मा स्वयं सिद्ध और स्वयंभू है। आत्म-मुक्ति ही परमात्मत्व की उपलब्धि है। आत्मज्ञान के लिए आत्मान्वेषण, सत्य की खोज, तत्त्वों की जिज्ञासा तथा आत्मानुभूति के बीजों का वपन करके चैतन्य की वेदिका पर आनंद का वटवृक्ष उगाने की अपेक्षा है। उस वटवृक्ष के अनेकों बीजों में एक शक्तिशाली और उर्वर बीज है-आवश्यक सूत्र में विवर्णित "चतुर्विंशति-स्तव"-"लोगस्स"। जिसमें जीवन निर्माण, विकास तथा लक्ष्य प्राप्ति हेतु 'आत्मकर्तृत्त्ववाद' का समञ्जन किया गया है। सीमित शब्दों में असीमित व्यक्तित्वों की गौरवगाथा के अमिट हस्ताक्षर व मंत्राक्षर इस स्तुति में विद्यमान हैं। एक व्यक्तित्व को भी सीमा में बांधना कठिन है वहाँ एक साथ चौबीस व्यक्तित्व विश्व की सर्वोच्च शक्तियां, संसार की सर्वोच्च उपलब्धियां जिनको सात पद्यों में गर्भित, मंत्रित, चमत्कृत एवं अलंकृत करना एक विचित्र, आलौकिक तथा पारदर्शी रहस्य है। ये सात पद्य परमात्म-पथ के परम पवित्र पगथिए हैं। अत्यन्त गूढ़ संक्षिप्त और रहस्यात्मक होने के कारण ये अपने एक-एक आरोहण के साथ-साथ गहरे अन्वेषण और गहरे अनुशीलन की अपेक्षा रखते हैं।
जैन शासन के पास यह एक अमूल्य निधि है। यदि ऐसा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह जीवन मूल्यों की आधारशिला है। इसमें जीवन कौशल के अद्भुत एवं अनुभूत सूत्र-ज्ञान-बोधि, दर्शन-बोधि और चारित्र बोधि तीनों संयुक्त रूप से निहित हैं जिनमें शांति और आध्यात्मिक शक्तियों का अखूट खजाना भरा है। जिस प्रकार खदान की गहरी खुदाई में अमूल्य हीरे-पन्ने प्राप्त होते हैं, सागर के गर्भ में महामूल्यवान निधि का भंडार समाया हुआ है उसी प्रकार लोगस्स ऊपर से दृश्यमान अपनी इस छोटी सी देह में अध्यात्मवाद का बहुमूल्य भंडार संजोये हुए है। इस लोगस्स महामंत्र को जप, स्वाध्याय, ध्यान की एकाग्रता से चेतन करने पर तथा अर्हत् व सिद्ध परमात्मा के साथ अद्वैत स्थापित करने पर चेतना की गहराई में अमूल्य तत्त्व, अभिसिद्धियां, अवधि ज्ञान, मनः पर्यवज्ञान तथा केवल-ज्ञान की उपलब्धि होती है।
__यह कोई सिद्धान्त या शास्त्र नहीं है। यह साधना का संबोध है, शाश्वत एवं सामयिक जीवन-मूल्यों का समन्वय है। इसमें तत्त्वज्ञान की गूढ़ता है और उन गूढ़ तत्त्वों को सीधी सरल भाषा में कह देने की विशिष्ट रचनाधर्मिता है। इसकी अपरिमेय शक्तिमत्ता, विश्वविश्रुत प्रभावकता का कारण किसी महर्द्धिक देव की शक्ति नहीं अपितु देवाधिदेव वीतराग अरिहंत, सिद्ध इसके उपास्य होने के कारण