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धार्मिक प्रकृति के चाँदमलजी बैद (राजलदेसर) को अदी8 का ऑपरेशन करवाना था। उन्होंने कहा-"जब मैं कायोत्सर्ग में लीन हो जाऊं तब मेरा ऑपरेशन करना सुंघनी सुंघाने की कोई आवश्यकता नहीं है। समय की चिन्ता मत करना।" ऑपरेशन में दो घंटे लगे। उन्होंने कायोत्सर्ग भी दो घंटे से पूरा किया। मुनि श्री सोहनलालजी (चूरू) ने पेट का ऑपरेशन बिना सुंघनी के ध्यान में स्थित होकर करवाया था। कई साधु-साध्वियां केश लुञ्चन के साथ ध्यानस्थ हो जाते हैं। मुझे जहाँ तक ध्यान है आचार्य श्री महाश्रमणजी भी ध्यानस्थ अवस्था में लोच करवाते हैं। ___ प्रेक्षा ध्यान के आरंभ में और समापन के ठीक पूर्व की जाने वाली अर्ह/महाप्राण ध्वनि से निर्मित बाह्य ध्वनि तरंगों से व्यक्ति प्रभावित होता है। इससे न केवल वैयक्तिक क्षमता का विकास होता है बल्कि एकाग्रता और निर्णय की क्षमता में भी अभिवृद्धि होती है। लम्बे समय तक इसका अभ्यास करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, प्राणशक्ति तथा स्मरण-शक्ति का विकास होता है। इन ध्वनि प्रकंपनों के प्रभाव से हमारे अनैच्छिक तंत्रिका संस्थान की दो धाराएं अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिकाओं के बीच अच्छा संतुलन स्थापित होता है।२० कायोत्सर्ग के पूर्व अर्हं ध्वनि के उच्चारण से निर्विचारता और शिथिलीकरण की प्रक्रिया में भी सहयोग मिलता है। कायोत्सर्ग का प्रयोजन
कायोत्सर्ग का प्रधान उद्देश्य आत्मा का सान्निध्य प्राप्त करना और सहज गुण मानसिक संतुलन बनाये रखना है। मानसिक संतुलन बनाये रखने से बुद्धि निर्मल और शरीर स्वस्थ रहता है। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने कायोत्सर्ग के पांच प्रयोजनों का उल्लेख किया है
देहमइजडसुद्धि सुदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा ।
झायइ य सुहं झाणं एग्गो काउसग्गम्मि ॥२२ १. देहजाड्यसुद्धि-श्लेष्म आदि के द्वारा देह में जड़ता आती है। कायोत्सर्ग से
श्लेष्म आदि के दोष नष्ट हो जाते हैं, इसलिए उनसे उत्पन्न होने वाली
जड़ता भी समाप्त हो जाती है। २. मतिजाड्यसुद्धि-कायोत्सर्ग में मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है, उससे
चित्त एकाग्र होता है। बौद्धिक जड़ता समाप्त होकर उसमें तीक्ष्णता आती
है।
लोगस्स और कायोत्सर्ग / ७६