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गया है। इसका कारण है कि उस समय रक्तचाप या चंचलता कम होने से आवेग, तनाव आदि शांत हो जाते हैं। कायोत्सर्ग : आध्यात्मिक दृष्टिकोण
__ आध्यात्मिक दृष्टिकोण के आधार पर स्थूल से सूक्ष्म जगत् की यात्रा का बाह्य जगत् से भीतर के जगत् में प्रवेश करने का उपक्रम है-कायोत्सर्ग। योग शास्त्रों में कायोत्सर्ग को आसनों का राजा होने के कारण ‘श्वसन' कहा है। अन्य योगासन शरीर को कुशल और स्वस्थ बनाते हैं जबकि 'श्वसन' मन को शांत कर व्यक्ति की आन्तरिक शक्ति को जागृत करता है, आन्तरिक ताकत की अनुभूति करवाता है।
डॉ. रमेश कावड़ियां ने तनाव ग्रस्त सात व्यक्तियों का E.E.G. लिया। फिर उनको कायोत्सर्ग करवाकर पुनः EE.G. लिया। दूसरी बार में E.E.G. में बड़े पैमाने पर अल्फा तरंग नोंधे थे। अल्फा स्थिति में अनुसंवेदी क्रिया, भागों या लड़ो की प्रक्रिया कम से कम होती है। स्वास्थ्यप्रद न्यूरोपेप्टाइड्स और एन्डोर्फिन्स सावित होने से स्वास्थ्य की पुनः प्राप्ति को गति मिलती है। डॉ. कावडियां ने लिखा है कि हमारे पास तीस मरीज ऐसे हैं जिनको बॉयपास सर्जरी की सलाह दी गई थी लेकिन उन्होंने वह करवाई नहीं। श्वसन, ध्यान के प्रयोगों के दौरान ३० में से २६ मरीज अब ऐसा कहते हैं कि उनको अब कभी भी बॉयपास सर्जरी करवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वे जिस प्रकार की स्फूर्ति की अनुभूति करते हैं उससे ऐसा लगता है कि नई धमनियां तैयार होकर उनके हृदय को आवश्यकतानुसार रक्त दे रही हैं।
दिल्ली, महरौली में स्वामी धर्मानन्दजी भी हृदय रोगियों को प्रेक्षा ध्यान, योगासन आदि साधनाओं द्वारा बॉयपास सर्जरी से बचाने में सफल हुए हैं।
अतः इतना तो निर्विवाद स्पष्ट है कि शरीर का शिथिलीकरण मन को शांत करने में मदद पहुंचाता है। कायोत्सर्ग में पहले शरीर को खींचा जाता है फिर शिथिल किया जाता है इससे शिथिलीकरण आसान बनता है। इसके साथ-साथ शरीर के जो-जो हिस्से खींच रहे हैं और शिथिल किये जा रहे हैं उसके ऊपर चेतना केन्द्रित करना कायोत्सर्ग का महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसी का नाम वर्तमान में जीना है। ऐसा होने से हृदय की क्षमता में सुधार होता है, कार्यक्षमता एवं मानसिक शांति का विकास होता है। इसी प्रकार ॐ, अर्हम्, लोगस्स, नमस्कार महामंत्र आदि में लीन एवं तन्मय होने से भी कर्म निर्जरा के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
७८ / लोगस्स-एक साधना-२