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व पच्चीस नहीं हो सकते, ऐसा किसी शक्ति विशेष की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं लगा हुआ है। वस्तुस्थिति यह है कि केवली भगवन्तों ने अपने ज्ञान से देखा कि अतीत के प्रत्येक काल-चक्र में चौबीस तीर्थंकर हुए हैं और भविष्य में भी चौबीस ही तीर्थंकर होंगे। इसलिए उन्होंने यह कह दिया कि प्रत्येक काल-चक्र में चौबीस
तीर्थंकर होते हैं। यदि उनके ज्ञान में तीर्थंकर कम ज्यादा होते तो वे कम ज्यादा कह देते। परन्तु कम ज्यादा तीर्थंकर उन्होंने अपने ज्ञान में नहीं देखा इसलिए उन्होंने कम ज्यादा न बताकर चौबीस ही बताये । १७
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तीर्थंकर चौबीस ही होते है । यह प्राकृतिक नियम है। प्रकृति के नियम या स्वभाव में मानव का कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता, वह तो अपने ढंग से पूर्ण होकर ही रहता है । यदि कोई कहे कि आग उष्ण क्यों होती है ? तो आप क्या उत्तर देंगे यही न कि यह उसका स्वभाव है। धुआं ऊपर की ओर क्यों जाता है, नीचे की ओर क्यों नहीं जाता? इसका समाधान भी यही करना होगा कि यह उसका स्वभाव है। ऐसे ही प्रकृति स्वभावानुसार अतीत काल-चक्र में चौबीस तीर्थंकर हुए हैं और अनागत काल-चक्र में चौबीस तीर्थंकर ही होंगे । इसलिए कहा गया है कि तीर्थंकर चौबीस ही होते हैं ।
ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रत्येक अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी काल में चौबीस - चौबीस ही ऐसे श्रेष्ठतम मुहूर्त्त आते हैं, जिनमें जन्मा हुआ मनुष्य ही तीर्थंकर हो सकता है ।
आचार्य सोमदेव सूरि ने इसी जिज्ञासा को समाहित करते हुए लिखा हैनियतं न बहुत्वं चेत कथमेते तथा विधाः । तिथिताराग्रहाभ्योधि भूभृत्यभृतयोमताः ॥
यदि वस्तुओं की संख्या नियत न हो तो तिथि, वार, नक्षत्र, तारा, ग्रह, समुद्र पर्वत आदि नियत क्यों माने गये ? जैसे ये बहुत होने पर भी इनकी संख्या नियत
है।
यही प्रश्न तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री मज्जयाचार्य ने मुनि अवस्था में अपने विद्यागुरु हेमराजजी स्वामी से पूछा - तीर्थंकर चौबीस ही क्यों ? हेमराजजी स्वामी ने फरमाया - यह एक अनादि नियम है । हमारे यहाँ के क्षेत्रीय कालक्रम में एक के बाद एक श्रृंखला में तीर्थंकर चौबीस ही होते हैं। क्यों का प्रश्न प्रकृति के साथ नहीं जुड़ता । बताओ दिन-रात के घंटा चौबीस ही क्यों, पच्चीस क्यों नहीं होते और तेईस क्यों नहीं होते, यह नैसर्गिक विश्व स्थिति है। पांचों ही महाविदेह क्षेत्र में चार-चार तीर्थंकर सदा एक साथ विहरमान रहते हैं । १६
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