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सकाम स्तुति
सकाम स्तुतियों में स्तोता की कोई न कोई कामना निहित रहती है। सांसारिक अभ्युदय, दुःख निवृत्यर्थ, शोक प्रशमनार्थ, धन, दौलत, पुत्र, पौत्र, पत्नी, आयु, यश, ऐश्वर्य, विजय, शक्ति, शरीर-सौष्ठव, बुद्धि एवं दिव्य लोक की प्राप्ति के लिए समर्पित स्तुतियां इस संवर्ग के अंतर्गत आती हैं। इस संवर्ग के स्तोता सांसारिक अभ्युदय, रोग-मुक्ति इत्यादि प्रसंग उपस्थित होने पर वैसे पुरुष की स्तुति में प्रवृत्त होता है, जो उसका मनोवांछित पूर्ण कर सके। निष्काम स्तुति
निष्काम स्तुतियों में सांसारिक कामना का अभाव रहता है। इसमें स्तोता का आलंबन निर्गुण, निराकार, सर्वव्यापक, परमब्रह्म परमेश्वर होता है। सिद्ध परमात्मा के अद्वितीय एवं विशिष्ट गुणों की एक झलक शक्र स्तव के पाठ में विवर्णित है
शिव-मयल-मरूय-मणंत-मक्खय-मवाबाह। मपुणवित्त सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं।
णमो जिणाणं जिय भयाणं ॥ इसका तात्पर्य इस प्रकार है(१) शिव-वे स्वयं सब विघ्न-बाधाओं, उपद्रवों से मुक्त हैं तथा उनका स्वरूप
ही 'शिव' अर्थात् परम कल्याणकारी है, सबके लिए मंगलकारी है। (२) अचल-वे स्वरूप में स्थिर होने से अचल हैं। (३) अरुज-वे पूर्ण निरामय, रोग-रहित हैं। (४) अनंत-उनकी ज्ञानादि शक्तियां अनंत हैं। वे जिस रूप में वर्तमान हैं, उस
स्वरूप का कभी अंत नहीं आएगा। अनंत शब्द विराट सत्ता का सूचक है। (५) अक्षय-कभी क्षय नहीं होंगे। जो पूर्ण निरामय-निरोग, अनंत सुख आदि
गुणों से युक्त हैं, उनके वे गुण कभी क्षीण नहीं होंगे। अव्याबाध-न तो वे किसी के लिए बाधा बनते हैं, न ही उनके लिए कभी कोई बाधा होगी। अपितु समस्त विघ्न-बाधाओं का क्षय करने वाले होने से अव्याबाध हैं। अनुपरावित्ति-वे जिस मुक्ति-स्थान पर पहुंच गए हैं, वहां से कभी भी वापस लौटकर संसार में पुनः नहीं आएंगे। - सिद्ध भगवंतों के उपरोक्त गुण उनके स्वरूप जन्य हैं। उनके स्मरण, चिंतन,
१६ / लोगस्स-एक साधना-१