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________________ कार्य प्रार्थना या स्तुति के द्वारा सिद्ध हो सकता है।' नेताजी सुभाषचंद्र बोस नियमित रूप से प्रतिदिन एक घंटा आत्मचिंतन करते थे। एक व्यक्ति ने उनसे कहा-'आपका एक-एक क्षण राष्ट्र के लिए बहुत मूल्यवान है, फिर आप एक घंटा निष्क्रिय बैठ कर क्यों निरर्थक करते हैं।' नेताजी ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया- 'मैं एक घंटा निरर्थक नहीं करता। जब मैं निरंतर काम करते हुए थक जाता हूं तो आत्मचिंतन से पुनः ताजगी पाता हूं। मैं अपने भीतर की 'बैटरी' को, जो निरंतर काम करते थक जाती है, उसे पुनः एक घंटे के ध्यान से 'चार्ज' कर लेता हूं।' ... अमेरिका में 'साइंस क्रिश्चियन सोसायटी' के पचासों चर्च और हजारों सदस्य हैं। उस सोसायटी का एक नियम है कि कोई भी सदस्य दवा नहीं ले सकता। अमेरिकी प्रवासी फूलकुमारी सेठिया ने उस सोसायटी के एक सदस्य से पूछा-'आप लोग बीमार तो होते ही होंगे। फिर आप अपनी बीमारी का उपचार कैसे करते हैं?'-उस सदस्य ने प्रत्युत्तर में कहा-'गॉड इज लव'-परमात्मा इतना उदार और शक्तिशाली है कि वह करुणा की वर्षा करता है और हमारी सब बीमारियां दूर हो जाती हैं। हम रोगी में ऐसी आस्था जगाते हैं, ईश्वर के प्रति इतनी सघन आस्था का निर्माण करते हैं कि उसकी बीमारियां समाप्त हो जाती हैं।२ उपरोक्त घटना-प्रसंग को जब मैंने-'अप्पाणं शरणं गच्छामि' में पढ़ा तब मुझे चतुर्विशंति स्तव, शक्रस्तुति आदि स्तवनों में समागत-आरोग्य बोहि लाभ, समाहिवरमुत्तमं दिंतु, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु, ता देव दिज्ज बोहिं भवे भवे पास जिण चंद, नाथ! मयि कुरु करुणा दृष्टिं दर्शनानंदमयी सृष्टिं-'हे प्रभो! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए, शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए, प्रभु मेरे अवगुण चित्त न धारो, प्रभो! मुझे सन्मार्ग में ले चल-इत्यादि पदों में अंतर्निहित रहस्य स्वतः हस्तगत हो गए। सचमुच आरोग्य, बोधि, समाधि, संयम, आनंद, ज्ञान एवं सिद्धि कहीं बाहर नहीं, स्वयं अपने भीतर है। स्तुति के माध्यम से अवचेतन की भूमिका में स्थित हो, इन्हें प्राप्त करने में कोई संदेह नहीं है। स्तुति और विज्ञान विज्ञान में ‘अवचेतन' का वाचक शब्द Neuro Endrocrine System है जिसका अर्थ ग्रंथि-तंत्र और नाड़ी-तंत्र का संयुक्त कार्य-तंत्र है। यह संयुक्त-तंत्र मस्तिष्क को प्रभावित करता है, इसलिए मूल्यवान है। यदि इसे स्तुति, मंत्र, स्वाध्याय, सचिंतन आदि सम्यक् साधनों द्वारा संतुलित रख सकें, तो सभी अनिष्ट भावनाओं से मुक्ति मिल सकती है और इष्ट भावनाएं अपना साम्राज्य स्थापित कर सकती हैं। १२ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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