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स्तुति का वैविध्य
भारत की सभी अध्यात्मवादी परंपराएं आत्म-साधना की प्रबल प्रेरणा प्रदान करती हैं। धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि सभी शास्त्रों में 'मानव - भव' को अमूल्य बताया गया है। जैनों के उत्तराध्ययन, बौद्धों के धम्मपद, शंकराचार्य के विवेक-चूड़ामणि, मुस्लिमों के कुरान, वैदिकों के वेद-उपनिषद्, वैष्णवों के रामायण-महाभारत, ईसाइयों के बाइबिल, सिक्खों के गुरुग्रंथ साहिब, पारसियों के अवेस्ता और आर्य समाज के सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथों में 'मानव-भव' को दुर्लभ बताकर मानवता की प्रेरणा दी गई है। रामचरितमानस में गोस्वामी संत तुलसीदास ने भी इसी सत्य को दर्शाया है
बड़े भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा ॥
निश्चय ही मोक्ष प्राप्ति का साधन यह मानव तन ही है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विविध प्रकार की आराधनाएं, अभ्यास -पद्धतियां एवं स्तुतियां उपलब्ध हैं। अपनी विवेकशीलता, न्यायप्रियता, सहिष्णुता, वीरता, त्याग एवं परोपकारिता आदि गुणों के कारण ही आज राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस, मोहम्मद, गुरु नानक इत्यादि महापुरुष भारतीय संस्कृति में स्तुत्य रहे हैं । तुलसीदासजी ने यथार्थ ही कहा है
संत समागम हरि कथा, तुलसी दुरलभ दोय । धन, यौवन, सुत, नारी, गृह ये तो जग के होय ॥
रामायण में हनुमान की महिमा भगवान राम के एक वीर आज्ञाकारी के रूप में की गई है। लाखों भारतीय श्रीराम और उनके प्रिय हनुमान की पूजा करते हैं, स्तुति करते हैं । वैदिक परंपरा में वंदन को सद्गुण की वृद्धि हेतु आवश्यक माना है।' इस परंपरा में संध्या वंदन का विधान है । यह धार्मिक अनुष्ठान सुबह-शाम दोनों समय किया जाता है। इस संध्या में विष्णु मंत्र का जल शरीर पर छिड़क कर शरीर को पवित्र बनाने का विधान है। श्रीमद्भागवत् में नवधाभक्ति का उल्लेख है । इस नवधाभक्ति में वंदन भी भक्ति का एक प्रकार बताया गया है। श्रीमद्भागवत् गीता के अठारहवें अध्याय में ' मा नमस्कुरु' कह कर श्रीकृष्ण ने वंदन के लिए भक्तों को उत्प्रेरित किया है । ईस्लाम धर्म में प्रतिदिन पांच बार नमाज पढ़ कर अल्लाह की स्तुति की जाती है । पारसी - जरस्थु धर्म में - 'नेक मनश्नी', 'नेक गवश्नी', 'नेक कुनश्नी' - अर्थात् पवित्र विचार, पवित्र वचन और पवित्र कर्म पर बल दिया गया है। गुरु नानक के काव्य में निर्गुण उपासना का
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अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय - १ / ५