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________________ कहा जा सकता किंतु इस प्रतिपादन में एक बहुत बड़ी सच्चाई का उद्घाटन होता है कि मानव शरीर में अनेक संवादी केन्द्र हैं । इन केन्द्रों पर मन को एकाग्र कर मन से उसकी प्रेक्षा कर हम ऐसे द्वारों का उद्घाटन कर सकते हैं, ऐसी खिड़कियाँ खोल सकते हैं जिनके द्वारा चेतना की रश्मियाँ बाहर निकल सकें और अघटित को घटित कर सके । निश्चय ही यह बहुत कठिन साधना है और निरन्तर लंबे समय तक इसका अभ्यास करके ही कुछ उपलब्ध किया जा सकता है । अभ्यास किये बिना केवल पुस्तकीय अभ्यास कोरा ज्ञान होता है । आगम वाणी के अनुसार - 'आऽहं सुविज्जा चरणं पमोक्खं' दुःख मुक्ति के लिए विद्या और आचार का अनुशीलन करें अर्थात् पहले जानो और फिर आचरण करो। " 'लोगस्स' की इन चैतन्य केन्द्रों पर जप अथवा ध्यान करने की अनेकों अनेकों अभ्यास पद्धतियाँ उपलब्ध हैं जिसमें “आरोग्ग बोहि लाभं समाहि वर मुत्तमं दिंतु " - इस पंक्ति के जप और ध्यान की विधि उपयुक्त और कर्म - रोग को नष्ट करने में निम्नानुसार सक्षम हैं प्रथम विधि मंत्र आरोग्ग बोहिला समाहिवरमुत्तमं चैतन्य- केन्द्र विशुद्धि-केन्द्र दर्शन-केन्द्र रंग नीला अरुण शांति-केन्द्र श्वेत दिंतु ज्ञान-केन्द्र श्वेत विशुद्धि-केन्द्र पर ध्यान जब नीले रंग में किया जाता है और “आरोग्ग" मंत्र में मन को स्थिर किया जाता है तब शरीर स्थित रोगाणुओं की उत्तेजना व सक्रियता मंद, मंदत्तर और मंदतम होती हुई शांत हो जाती है। जैसे निद्राधीन व्यक्ति पर शस्त्र प्रहार करके सरलता से उसका हनन किया जा सकता है वैसे ही रक्त के श्वेतकण प्रसुप्त रोगाणुओं को सरलता से नष्ट कर देते हैं, तब रोग भी उपशमित हो जाता है। इसके साथ-साथ इस केन्द्र पर ध्यान करने से अथवा इस केन्द्र के जागृत होने पर व्यक्ति कवि, महाज्ञानी, शांत चित्त, निरोग, शोकहीन और दीर्घजीवी हो जाता है। थाईराइड़, ग्रंथि के रोग भी इस चक्र के जागृत होने पर नहीं होते । विशुद्धि केन्द्र पर नीले रंग का ध्यान आरोग्य का बहुत बड़ा निमित्त कारण बनता है। दर्शन-केन्द्र पर अरुण रंग का ध्यान, शांति और ज्ञान- केन्द्र पर श्वेत रंग का २०४ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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