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'लोगस्स-एक साधना'-भाग-1पुस्तक भी पाठक में विकास की अनंत-अनंत संभावनाएं खोजती-सी प्रतीत होगी। सिद्ध भगवन्त अनंत है मेरी वंदना की भाव उर्मियां भी अनंत हैं अतः हृदय से मैं नतमस्तक हूँ 'चतुर्विंशति-स्तव' (अर्हत्-सिद्ध परमात्मा) के प्रति जिसमें अवगाहन कर मुझे बहुत कुछ पाने का सुअवसर मिला है।
गण या गणि के अनंत उपकारों से उपकृत, आचार-निष्ठ, संघ व संघपति के प्रति समर्पित, तत्त्वज्ञान व संस्कार प्रदात्री स्वर्गीया साध्वी श्री सुखदेवांजी एवं स्वर्गीया तपस्विनी साध्वी श्री भत्तूजी के जीवन से मुझे जो मिला उसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। मुझे सहज ही गौरव की अनुभूति होती है कि गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी ने जीवन निर्माण के उन अपूर्व क्षणों में मुझे उन कलात्मक हाथों में सौंपा जिससे यह लघुकृति निर्मित हो पाई।
मैं श्रद्धावनत हूँ गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के प्रति जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से सूर्य की तरह मेरे जीवन पथ को आलोकित किया। चंद्रमा की तरह संसार दावानल में विदग्ध को शीतलता प्रदान की। गंगा की तरह पापों का शमन किया। अनंत विस्तृत आकाश की तरह अपनी छाया में शरण दी।
__ श्रद्धासिक्त प्रणति है आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के पावन पादारविन्दों में जिनकी अतीन्द्रिय चेतना से निःसृत पावन रश्मियों के उजास ने मेरे पथ को प्रशस्त किया है।
___ मैं प्रणत हूँ आचार-निष्ठा एवं अध्यात्म-निष्ठा के प्रतीक तथा वाणी के अल्प प्रयोग में बहुत कुछ कह देने की क्षमता धारण करने वाले अविचल धृतिधर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरण कमलों में जिनकी दिव्य दृष्टि और करुणादृष्टि मेरी संयम-साधना और साहित्य-साधना दोनों को आलोकित कर रही है।
पूज्य प्रवर ने व्यस्ततम क्षणों में भी महती कृपा कर कृति का अवलोकन किया और आशीर्वचन प्रदान किया। इससे कृति का प्रत्येक पृष्ठ, पंक्ति और अक्षर गौरवान्वित हुआ है।
नतमस्तक हूँ अहर्निश सारस्वत साधना में संलग्न संघ महानिदेशिका आदरणीया महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के प्रति जिनके वात्सल्य नेत्र हमें सतत प्रोत्साहित करते रहते हैं।
___ मैं आभारी हूँ आदरणीया मुख्य नियोजिकाजी के प्रति, जिन्होंने सदैव मझे इस दिशा में उत्साहित रखा।
मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ शासन गौरव साध्वीश्री राजीमतिजी की जिनकी पावन प्रेरणा ने मुझे अपने जीवन के विराट लक्ष्य से जुड़े लोगस्स महामंत्र में अभिस्नात करने के लिए प्रेरित किया।