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करती रहती है, इस वर्ष ओर अधिक विकास करो"। इसी क्रम में मात्र हृदया महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री जी ने आशीर्वाद की एक पंक्ति में लिखा- “साध्वी पुण्ययशाजी के श्रम की सार्थकता इसी में है कि उनके मन में पुरुषार्थ की लौ जलती रहे।" उस प्रसन्न मुद्रा और संजीवनी प्रदान करने वाले इन आशीर्वचनों से मेरी कार्यशीलता को जो गति मिली, जो प्राणों को अभिनव ऊर्जा मिली कृतज्ञता ज्ञापित करने में शब्द असमर्थ हैं। मैं लोगस्स की भूमिका में बैठकर उस महागुरु को प्रणाम करती हूँ कि उनकी अहेतुकी कृपा एवं सहज प्रेरणा मेरे मानस मंदिर में सदैव स्फूर्त होती रहे।
ज्योंहि गुरुदेव को पुस्तकें समर्पित कर मैं शासन गौरव साध्वीश्री राजीमति जी के पास पहुँची आपने प्रसन्नता से मुझे उत्साहित करते हुए कहा-“आगे क्या करना है" ? मेरे मुँह से सहज ही निकला-“लोगस्स के बारे में लिखना है।" बस उसी दिन से एक लक्ष्य बन गया कि अब अपनी चेतना को लोगस्स के अन्वेषण में अनुप्राणित करना है।
फरवरी २००६ में बीदासर से गुरुदेव का मंगलपाठ सुन हमने जोधपुर (सरदारपुरा) चातुर्मास हेतु विहार किया। दो दिवस पश्चात् लाडनू पहुँचते ही गुरुबल और गुरु शक्ति को आधार बनाकर मैंने लोगस्स पर लिखना शुरू किया। गुरु के कृपा भरे आशीर्वाद से शिष्य की शक्ति और कर्मठता को विशेष गतिशीलता मिलती है, यह मैंने पग-पग पर अनुभव किया है। लक्ष्य, लगन और लेखन की तत्परता के साथ-साथ मुझे व्यक्त अव्यक्त गुरुबल से सतत् मार्गदर्शन मिलता रहा है। कल्पना ही नहीं थी कि इतना शीघ्र यह कार्य हो जाएगा। क्योंकि नमस्कार महामंत्र पर तो बहुत साहित्य सामग्री उपलब्ध हुई थी। परन्तु लोगस्स पर कोई विशेष साहित्य नहीं मिला। फिर भी गुरुबल और संकल्प-बल मेरे साथ था। इसलिए छुट-पुट सामग्री मिलती रही और उत्साह पूर्वक लेखन का कार्य चलता रहा। इस मध्य कुछ दिन हमारा नीमच (M.P.) में रहना हुआ। वहाँ प्रोफेसर S.L. नाहर (शांतिलालजी नाहर) का सहज योग मिल गया। उन्होंने इस कृति को परिष्कृत, परिमार्जित एवं संशोधित करने में अपना समय और श्रम लगाया। प्रोफेसर नाहर द्वारा प्रदत्त कुछ सुझावों ने मेरी लेखनी को सुदृढ़ बनाया। कदम-कदम चलते-चलते लगभग डेढ़ वर्ष में यह प्रयास 'लोगस्स-एक साधना' भाग 1 व भाग 2 के रूप में सफल हो गया।
- इसमें लोगस्स साधना के जिन-जिन प्रयोगों को दर्शाया गया है वे अधिकांश प्रयोग महायोगी आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के साहित्य से प्राप्त किये गये हैं और काफी प्रभावी भी पाये गये हैं।
‘लोगस्स' अपने भीतर अनंत-अनंत संभावनाएं समेटे हुए है अतः