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भव खामी हो, तप्त मिटै तुम ध्यान हो निस्सनेही", तू मटण जम त्रास, शिवदायक तू जगनाथ, भाव जप्या शिव होय", समरण करता आपरो मनवांछित होय - इस प्रकार तीर्थंकर क्लेश विदारक संसार संतारक, भवसिंधु पोत, तृष्णा तारक आदि संबोधनों से संबोधित होते हैं । निस्संदेह तीर्थंकरों के नाम मंत्राक्षर हैं। इन नामों के स्तवन में सम्पूर्ण कर्मों को क्षीण करने की क्षमता है। प्राचीन आचार्यों प्रत्येक तीर्थंकर के नाम की मंत्रात्मकता के साथ एक विशिष्ट महत्त्व को दर्शाया हैं जो निम्न हैं
मंत्र जप
१. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं ऋषभदेवाय नमः
२. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अजिनाथाय नमः ३. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं संभवनाथाय नमः ४. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अभिनंदनाथाय नमः ५. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सुमतिनाथाय नमः ६. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं पद्मप्रभवे नमः
७. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सुपार्श्वनाथाय नमः
८. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं चन्द्रप्रभवे नमः ६. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सुविधिनाथाय नमः १०. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं शीतलनाथाय नमः
११. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्रेयांसनाथाय नमः १२. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं वासुपूज्य प्रभवे नमः १३. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं विमलानाथाय नमः १४. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अनंतनाथाय नमः १५. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं धर्मनाथाय नमः १६. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं शांतिनाथाय नमः
१७. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं कुंथुनाथाय नमः १८. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अरनाथाय नमः
लाभ
इस जप से हर प्रकार का भय
होता है।
दूर
विजय प्राप्ति
कार्य की सफलता आनंद-प्राप्ति
सद्बुद्धि प्राप्ति तीन माला से भाग्य खुलता है (प्रतिदिन)
नींद में इच्छित सवालों का
जवाब मिलता है । (प्रतिदिन चार माला)
प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण प्रज्ञा का जागरण
गर्मी का परिषह दूर होता है (प्रतिदिन तीन माला)
सब आज्ञा माने
मंगल ग्रह शांत
बुद्ध की निर्मलता
विद्या प्राप्ति (प्रतिदिन तीन माला) जानवरों का उपद्रव शांत ग्राम ग्राम उपद्रव शांत (प्रतिदिन आठ माला)
शत्रु विजय
सर्वत्र विजय
नाम स्मरण की महत्ता / १७३