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२. भाव तीर्थ-ज्ञान-दर्शन-चारित्र का संघात होने से साधु, साध्वी, श्रावक,
श्राविका संघ भाव तीर्थ है।
भाव तीर्थ तीन प्रकार का है१. प्रवचन २. चतुर्विध संघ ३. गणधर
प्रवचन वीतराग वाणी है। संघ ज्ञान और चारित्र का संघात है तथा गणधर श्रुतज्ञान के धारक हैं अतः तीनों ही भाव तीर्थ की गणना में आते हैं। उनके द्वारा भव्य प्राणी अपना कल्याण करते हैं।
इसके आधार पर तीर्थ धर्म के तीन अर्थ होते हैं१. गणधर का धर्म-शास्त्र परम्परा को अविच्छिन्न रखना। २. प्रवचन का धर्म-स्वाध्याय करना। ३. चतुर्विध संघ का धर्म-आध्यात्मिक आराधना।
स्कन्दक पुराण के अनुसार सत्य, क्षमा, इंद्रिय निग्रह, जीवदया, सरलता, दान, दया, संतोष, ब्रह्मचर्य, मीठी वाणी, ज्ञान, धृति और तप-ये सब तीर्थ हैं किंतु मन की विशुद्धि सब तीर्थों में उत्कृष्ट तीर्थ मानी गई है। पद्मपुराण में कहा गया है जिसके हाथ, पैर एवं मन संयमित हैं तथा जो विद्या (ज्ञान) तप और कीर्तिमान हो उसको तीर्थ का फल मिलता है। इंद्रिय दमन करने वाला जहाँ भी निवास करता है उसके वहीं पर नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र एवं पुष्कर हैं। राग-द्वेष को धोने वाले ध्यान से पवित्र किये हुए ज्ञान जल वाले मानस तीर्थ में जो स्नान करता है वह परमगति को प्राप्त होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में हरिकेश मुनि से कुछ जिज्ञासाएं तीर्थ के संबंध में की गईं• आपका नद (जलाशय) कौन-सा है?
आपका शांति तीर्थ कौन-सा है? आप कहाँ नहाकर कर्मरज धोते हैं?"
इनके समाधान में कहा गया• अकलुषित एवं आत्मा का प्रसन्न लेश्या वाला धर्म मेरा नद (जलाशय) है।
ब्रह्मचर्य मेरा शांति तीर्थ है। जहाँ नहाकर मैं विमल विशुद्ध और सुशीतल होकर कर्म रज का त्याग करता हूँ।
इसी तथ्य को भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा-जिसमें धैर्य रूप कुण्ड और सत्य रूप जल भरा हुआ है तथा जो अगाध, निर्मल एवं अत्यन्त शुद्ध है उस
लोगस्स एक धर्मचक्र-२ / १४३