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तीर्थ की उत्पत्ति प्रथम तीर्थंकर ऋषभ द्वारा हुई। यद्यपि धर्म शाश्वत है। इसे न तो कोई पैदा करने वाला है और न ही नष्ट करने वाला। क्योंकि धर्म तो वस्तु का स्वभाव है, आत्मा का स्वभाव है, किंतु व्यवहार में धर्म का मार्ग कैसे जाना जा सकता है? उसकी प्राप्ति में क्या-क्या रूकावटें हैं? उसका सही रूप क्या है? उससे समाज और व्यक्ति का भला कैसे हो सकता है? समाज का निर्माण कैसे हो सकता है? इत्यादि महत्त्वपूर्ण तथ्यों का आधार धर्मतीर्थ में निहित है और यही धर्म तक पहुँचाने का व्यवहार मार्ग है।
तीर्थंकर शब्द का अर्थ भी यही है-धर्मतीर्थ को चलाने वाला। चलते-चलते जब किन्हीं कारणों से नदी सूख जाती है, तब उसे प्रवाहित करने के लिए जो प्रयत्न किया जाता है, उसे प्रवर्तन कहते हैं। ऐसे ही धर्मरूपी नदी के सूख जाने पर उसे चालू करने का महान कार्य 'जिन' बनने पर जिन महापुरुषों ने किया, उसे हम तीर्थंकर नाम से जानते हैं। 'तीर्थंकर' शब्द जैन साहित्य का पारिभाषिक शब्द है। जैन धर्म में ऐसे तीर्थंकरों की संख्या चौबीस मानी गई है। चौबीस ही तीर्थंकर अपने-अपने समय में धर्मतीर्थ की स्थापना करते हैं।
अतः यह स्पष्ट है कि जैन धर्म अनादि कालीन धर्म है, ढाई या पांच हजार वर्ष पहले यह शुरू नहीं हुआ। अर्हत् ऋषभ, अर्हत् पार्श्व अथवा अर्हत् महावीर ने तो केवलज्ञान प्राप्ति के बाद संसार को पार करने का सच्चा मार्ग जानकर वह मार्ग प्रदर्शित किया। वे भी अंतिम भव में-तीर्थंकर बनने के पूर्व मनुष्य भव में अपने पूर्ववर्ती अन्य तीर्थंकरों द्वारा प्रवर्तित मार्ग स्वरूप जैन धर्म का आचरण करके ही इस भव में तीर्थंकर हुए हैं। इन तीर्थंकर भगवन्तों ने नया जैन धर्म स्थापित या शुरू नहीं किया। वह पहले से ही है। जब से संसार है (और मोक्ष है) तब से उसे तरने का मार्ग स्वरूप जैन धर्म भी है ही। केवलज्ञान के प्रभाव से नए-नए तीर्थंकर इस भरतक्षेत्र में इसे प्रकाशित करते हैं और महाविदेह क्षेत्र में तो हमेशा तीर्थंकर भगवान होते ही हैं और वे इस धर्म की धारा प्रवाहित करते ही रहते हैं। अध्यात्म कर्मभूमि भारत पर इस अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ और चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर थे।
तीर्थ शब्द की मीमांसा
'तीर्यतेऽनेनेति तीर्थम्'-जिसके द्वारा तरा जाये उसे तीर्थ कहते हैं। वह द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार का हैं।' १. द्रव्य तीर्थ-नदी आदि का घाट तथा वह भू भाग जो सम हो, अपाय से
रहित हो अथवा भूतवादियों का प्रवचन द्रव्य तीर्थ है।
१४२ / लोगस्स-एक साधना-१