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११. लोगस्स एक धर्मचक्र-१
अर्हत् सम्पूर्ण लोक के रहस्यों को केवलज्ञान रूपी प्रकाश से प्रकट करते हैं जो हमारी बोधि, समाधि और सिद्धि में सहायक बनते हैं। मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ इसका बोध भी अर्हत् की शरण स्वीकार करने से ही होता है। अर्हत् मोक्ष मार्ग रूप रत्नत्रयी के उपदेष्टा हैं। इस रत्नत्रयी पर चलने वाले भव्य जीवों की ही मुक्ति संभव है अतः लोगस्स उज्जोयगरे अर्हतों के लिए यह विशेषण अपनी सार्थकता रखता है।
विश्व में प्रमुखतः सात चक्र प्रतिष्ठित माने जाते रहे हैं१. संसार चक्र २. अशोक चक्र ३. सुदर्शन चक्र ४. काल चक्र ५. कर्म चक्र ६. धर्म चक्र ७. सिद्ध चक्र
सातों चक्रों में अन्तिम दो चक्र-धर्म चक्र एवं सिद्ध चक्र, मोक्ष प्राप्ति में सहायक होने से सर्वश्रेष्ठ माने गये हैं। कहा जाता है कि जब देव तीर्थंकरों के समवसरण की रचना करते हैं तब समवसरण के चारों मुख्य द्वारों पर अद्भूत कांति वाला एक-एक 'धर्म चक्र' स्वर्ण-कमल में स्थापित करते हैं।' यह है धर्म चक्र का द्रव्य रूप-आकार रूप रचना।
लोगस्स देवाधिदेव अधिष्ठित भाव धर्म चक्र है। इस चक्र के द्वारा कर्म-चक्र के व्यूह का भेदन होता है। चक्र के प्रथम पद्य में चक्र अधिष्ठित देवाधिदेव की पांच प्रमुख विशेषणों से स्तवना एक विशेष लक्ष्य पूर्वक की गई प्रतीत होती है। क्योंकि बहु अर्थात्मक होने के कारण एक शब्द के अनेकों अर्थ हो सकते हैं। भगवान महावीर के समय में भी पूरणकश्यप, अजित केशकंबलि, गोशालक आदि
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