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________________ निर्विवाद है कि ध्येय जितना बड़ा होगा उसका रास्ता उतना ही लम्बा और बीहड़ भी होगा पर मजबूत आलंबन व्यक्ति को पार पहुँचा देता है। वीतराग स्वरूप की प्राप्ति अथवा सिद्धि प्राप्ति का लक्ष्य सचमुच बहुत विराट है। यह एक जन्म की नहीं कई जन्मों की साधना की निष्पत्ति से ही संभव है। अतः वीतराग आत्माओं का नाम, अर्हत भगवन्तों का नाम और स्वरूप हमारे मन, वाणी और काया में, श्वास-श्वास में अनुगूजित रहे, कब तक? जब तक लक्ष्य सिद्धि हो तब तक, यही अर्हत् स्वरूप मीमांसा अर्थात् लोगस्स के आभ्यन्तर स्वरूप मीमांसा का रहस्य है। संदर्भ १. शक्ति एवं शांति का स्रोत णमोकार महामंत्र-पृ./३६ २. चौबीस तीर्थंकर-पृ./८ ३. वही-पृ./८ ४. वही-पृ./८ ५. आवश्यक भाष्य-४६, श्री भिक्षु आगम विषय कोश, पृ./३०२, कल्पसूत्र-सूत्र ३३ ६. भद्रबाहु कृत आवश्यक नियुक्ति खण्ड १ परिशिष्ट ३ पृ./३४६ ७. चौबीस तीर्थंकर-पृ./१२ ८. पर्युषण साधना-पृ./६० ६. आवश्यक नियुक्ति-२१५ १०. नंदी मलयागिरी वृत्ति-पृ./४१ ११. शक्ति एवं शांति का स्रोत णमोक्कार महामंत्र-पृ./१३६ १२. वही-पृ./१३५ १३. भक्तामर-श्लोक/१० चौबीसी-८/३ १५. उत्तराध्ययन-६/२ उत्तराध्ययन-१६/२ १७. प्रज्ञापना-सिद्ध प्रज्ञापना पद, भगवती, इक्कीस द्वार-१५वां द्वार १८. पर्युषण साधना-पृ./७ १६. महाप्रज्ञ का रचना संसार-पृ./२५७ २०. वही-पृ./२५७ २१. शक्ति एवं शांति का स्रोत णमोक्कार मंत्र-पृ./६२ १२४ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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