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• आत्मा में छिपे हुए कोषागार को प्रकट करने वाली दिव्य ज्योति है लोगस्स । आत्मा को परमात्मा बनाने का महामंत्र है लोगस्स ।
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आत्म शोधक, पोषक और भव रोग विनाशक महारसायन है लोगस्स । आत्म विकास का मनोहर मंदिर है लोगस्स ।
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१०. लोगस्स स्वरूप मीमांसा
लोगस्स को एक महाशक्ति के रूप में महामंत्र की संज्ञा दी गई है। इस महामंत्र के सर्वाधिक शक्तिशाली और लोकोत्तर होने का प्रमुख कारण है-इस महामंत्र के अधिनायकों की परम विशुद्धि । क्योंकि सरागी की शक्ति कितनी ही अधिक क्यों न हो तो भी वीतराग की अचिन्त्य शक्तिमत्ता और प्रभावशीलता रूप सागर के सम्मुख वह एक बिंदु जितनी भी नहीं होती है ।
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आत्मा रूपी नेवले को डस रहे आधि, व्याधि और उपाधि रूपी भयंकर सर्प के विष को दूर करने वाली नोलबेल (वनस्पति) है लोगस्स ।
आत्मकमल को विकसित करने वाला सहस्रांसु है लोगस्स ।
आध्यात्मिक गुण - रत्नों की प्राप्ति का अगाध रत्नाकर है लोगस्स ।
भव संताप निवारक संजीवनी है लोगस्स ।
भव्य जीवों को भव समुद्र में मुक्ति रूपी तट को दिखाने वाला दीपस्तम्भ है लोगस्स ।
साध्य को सिद्ध करने का सुन्दर साधन है लोगस्स ।
अनादि काल से स्व-पर के आत्म जीवन का केवल - ज्ञान के द्वारा साक्षात्कार करवाने वाला दर्पण है लोगस्स ।
• मुक्ति नगर का प्रवेश द्वार है लोगस्स ।
आत्मा के पराक्रम को प्रस्फुटित करने की महान दिव्य शक्ति है लोगस्स । चौबीस तीर्थंकरों का गुण संकीर्तन जैन साधना का एक आवश्यक अंग है। उन्हीं तीर्थंकरों की स्तुति का साधन होने से लोगस्स को एक महाशक्ति के रूप में महामंत्र की संज्ञा दी गई है। इस महामंत्र के सर्वाधिक शक्तिशाली और
लोगस्स स्वरूप मीमांसा / १११