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है। लोगस्स का बाह्य स्वरूप, इसमें अभिमंडित सात गाथा, साढ़े तीन अन्तराल, प्रत्येक गाथा के चार चरण, अट्ठाइस संपदा एवं दो सौ छप्पन अक्षर सहित एक शक्ति पुञ्ज अक्षर विन्यास के रूप में प्रतिष्ठित है तथा आभ्यन्तर स्वरूप अर्हतों व सिद्ध भगवन्तों के गुणातिशयों से महिमा मंडित है। इस प्रकार रात को आकाश गंगा के चमकते सप्तऋर्षि के नक्षत्रों की भांति यह महासूत्र सर्वसूत्रों में अपना अपूर्व स्थान रखता है। इसकी देह संरचना में अभिमंडित २५६ अक्षरों में लघु अक्षर २२६ तथा गुरु अक्षर २७ हैं, जिनकों निम्न रेखाचित्र के माध्यम से भलिभांति समझा जा सकता है।
गुरु कु ल अक्षर ..
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ॐ
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४ . ३७ कुल योग २२६
२७ २५६ नोट-कहीं-कहीं २६ संपदा और २६० अक्षरों की मान्यता भी है पर इसका रहस्य क्या है? मैं नहीं समझ पाई। संपदा का सामान्यतः अर्थ है-विश्राम लेने का स्थान । अर्थात् पद्यों को बोलते समय बीच में कितने विश्राम लेने चाहिए? लोगस्स के एक चरण की एक संपदा होने से एक पद्य की चार संपदाएं और सात पद्यों की अट्ठाईस संपदाएं ही उपयुक्त लगती हैं। वर्ण विन्यास
ऐसे-ऐसे मंत्र पद जो उनके योजक महर्षि महानुभावों के अलौकिक तप, त्याग तथा तेज के त्रिविध शक्ति संपुट द्वारा परिवेष्टित हुए होते हैं। उसी शक्ति को लेकर उन मंत्र पदों में अद्भूत सामर्थ्य उत्पन्न हो जाता है। जिस प्रकार जड़ जैसी गिनी जाने वाली रसायन विद्या के एक सामान्य नियमानुसार ऋणात्मक एवं धनात्मक स्वभाव की दो धातुओं के टुकड़ों को जब योजक यथोचित प्रकार से जोड़ देता है तो उसमें अद्भूत एवं अलौकिक शक्ति का आश्चर्य जनक संचार हो जाता है। उस शक्ति के द्वारा या उसके बल पर लाखों मनुष्यों के शारीरिक बल से या दीर्घकालिक परिश्रम से, उद्योग से भी नहीं हो सकता, वही कार्य बहुत ही ६० / लोगस्स-एक साधना-१