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लोगस्स : नाम मीमांसा
संध्या कर्म, उपासना, अवेस्ता, प्रार्थना एवं नमाज की तरह जैन धर्म में दोषविशुद्धि एवं गुणाभिवृद्धि के लिए आवश्यक का विधान है। जीवित रहने के लिए श्वास की अनिवार्यता वत् अध्यात्म के क्षेत्र में जीवन की पवित्रता के लिए जो क्रिया या साधना जरूरी है उसे आगम में आवश्यक की संज्ञा से अभिहित किया गया है। आवश्यक अर्थात् सामायिक, चतुर्विंशति- स्तव, वंदन, प्रतिक्रमण आदि ८० / लोगस्स - एक साधना-१