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जे ए
पाठ
शब्दार्थ वंदिय
वंदित मए
मेरे द्वारा
जो ये लोगस्स
लोक में उत्तमा
उत्तम सिद्धा
सिद्ध हैं (वे) आरोग्ग
आरोग्य बोहि लाभं बोधिलाभ समाहिवरमुत्तमं श्रेष्ठ समाधि उत्तम दिंतु
दें। चंदेसु
चन्द्रमांओं से निम्मलयरा निर्मलतर आइच्चेसु सूर्यों से अहियं
अधिक पयासयरा प्रकाशक (प्रकाश करने वाले) सागर वर गंभीरा समुद्र से गंभीर सिद्धा
सिद्ध भगवान सिद्धिं
सिद्धि-मुक्ति मम
मुझे दिसंतु
नोट-लोगस्स के चित्र में लोगस्स पाठ के बाहर जो आत्माएं दृश्यमान हो रही हैं। वे अनंत सिद्ध आत्माओं के प्रतीक के रूप में दर्शायी गई हैं।
१५ कर्मभूमि क्षेत्रों में पांच भरत और पांच एरभरत इन दस क्षेत्रों में कालचक्र का व्यवहार चलता है। कालचक्र के उत्सर्पिणी अवसर्पिणी विभागों में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर होते हैं। इस तरह एक कालचक्र में एक क्षेत्र में अड़तालीस तीर्थंकर होते हैं। इस तरह ५ भरत, ५ एरभरत में कुल चार सौ अस्सी तीर्थंकर एक कालचक्र में जन्म लेते हैं। महाविदेह क्षेत्र में कालचक्र का व्यवहार नहीं है परंतु वहां उत्कृष्ट हो तो १६० तथा जघन्य बीस तीर्थंकर सदैव होते हैं। इस तरह अनंत कालचक्रों में अनंत आत्माएं तीर्थंकर बन चुकी हैं और अनंत आत्माएं तीर्थंकर बनेंगी। अतएव सिद्ध आत्माएं अनंत हैं।
लोगस्स एक विमर्श / ७६