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अशुद्ध ७७६, ३४४|१-८ | ३४४. भंते! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-मनुष्य, जो सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होने योग्य है? इसी प्रकार ३४४. भंते ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञि-मनुष्य, जो सौधर्म-कल्प में देव के रूप में उपपन्न होने योग्य है ०? इस प्रकार सौधर्म
जैसे असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक- -जीव के सौधर्म-देव में उपपद्यमान बतलाये गये कल्प में देव-रूप में उपपद्यमान (भ. २४/३३६-३४१) असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञि-पञ्चेन्द्रियहैं (भ. २४/३३६-३४१), वही सात गमक यहां वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-पहले दो गमक (प्रथम और -तिर्यग्योनिक-जीव के जैसे सात गमक (बतलाये गये हैं), वैसे ही सात गमक यहां (वक्तव्य हैं), इतना विशेष है-पहले दो गमकों द्वितीय) में अवगाहना-जघन्यतः एक गव्यूत, उत्कृष्टतः तीन गव्यूत । तीसरे गमक में जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कृष्टतः (प्रथम और द्वितीय) में अवगाहना-जघन्यतः एक गव्यूत, उत्कर्षतः तीन गव्यूत । तीसरे गमक में जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कर्षतः भी भी तीन गव्यूत । चौथे गमक में जघन्यतः एक गव्यूत, उत्कृष्टतः भी एक गव्यूत । अन्तिम तीन गमकों (सातवें, आठवें तीन गव्यूत। चौथे गमक में जघन्यतः एक गव्यूत, उत्कर्षतः भी एक गव्यूत। अन्तिम तीन गमकों (सातवें, आठवें और नौवें) में और नवें) में जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कृष्टतः भी तीन गव्यूत। शेष निरवशेष पूर्ववत्।
जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कर्षतः भी तीन गव्यूत । शेष निरवशेष पूर्ववत् । ७७६| ३४५/१-४| ३४५. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है? इसी प्रकार जैसे संख्यात ३४५. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञि-मनुष्यों से सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है? इस प्रकार असुरकुमारों में उपपद्यमान
वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों का असुरकुमार-देव में उपपद्यमान (भ. २४/१३९-१४१) की भांति नौ गमक यहां संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञि-मनुष्यों के नौ गमक (भ. २४/१३९-१४१) जिस प्रकार (बतलाए गए हैं), उसी प्रकार नौ गमक
वक्तव्य हैं। केवल इतना विशेष है-सौधर्म-देव की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत्।। यहां वक्तव्य हैं, इतना विशेष है-सौधर्म-देव की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत्। ७७७] ३४७/१-५ | असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी-मनुष्य की (ईशान-देवलोक में) भी असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय- (ईशान-देवलोक में उपपद्यमान) असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञि-मनुष्य की भी स्थिति उसी प्रकार (वक्तव्य है) जैसी (ईशान
तिर्यग्योनिक (भ. २४/३३६-३४१) की भांति शेष वक्तव्यता। अवगाहना-जिन स्थानों में अवगाहना एक गव्यूत देवलोक में उपपद्यमान) असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (भ. २४/३३७-३४१) की (उक्त है)। अवगाहना बतलाई गईं, उन स्थानों में यहां (ईशान-देवलोक में) उपपन्न होने वाले मनुष्य-यौगलिक की अवगाहना कुछ अधिक एक भी-जिन स्थानों में (वहां) अवगाहना एक गव्यूत बतलाई गई, उन स्थानों में यहां (ईशान-देवलोक में) उपपन्न होने वाले मनुष्य-योगलिक गव्यूत वक्तव्य है। शेष पूर्ववत् ।
की अवगाहना कुछ- -अधिक-एक-गव्यूत (वक्तव्य है)। शेष (परिमाण आदि लब्धि) पूर्ववत्। ७७७| ३४८/१-४ | संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक और मनुष्य के सौधर्म--देवलोक में उपपद्यमान देवों की भांति | संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक और मनुष्य के सौधर्म-देवलोक में उपपद्यमान (संज्ञि-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों
ईशान-देवलोक में भी नौ गमक अविकल रूप में वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-ईशान-देव की स्थिति और कायसंवेध (भ. २४/३४२), संज्ञि-मनुष्यों (भ. २४/३४५)) की भांति ईशान-देवलोक में भी नौ गमक निरवशेष (वक्तव्य हैं), इतना विशेष यथोचित ज्ञातव्य हैं।
है-ईशान-देव की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। ७६४/ २९३| ९ | की भांति।
की भांति, लेश्या सनत्कुमार-, माहेन्द्र- और ब्रह्मलोक-देवों में एक पद्म-लेश्या, शेष देवों में एक शुक्ल-लेश्या। वेद वे स्त्री-वेद वाले नहीं होते, पुरुष-वेद वाले होते हैं, नपुंसक-वेद वाले नहीं होते। आयुष्य और अनुबंध स्थिति-पद (पण्णवणा, पद ४) की भांति
(वक्तव्य हैं)। शेष ईशान-देव की भांति तथा कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं।
शतक २५ पृष्ठ| सूत्र | पंक्ति
अशुद्ध ७९६ / ९९/२-४| तीसरे पद 'बहुवक्तव्यता' (सू. ३१) की भांति तथा 'औषिकपद' भी उसी प्रकार वक्तव्य है। सकायिक जीवों का अल्पबहत्व | तीसरे 'बहुवक्तव्यता (-पद)' के 'औधिकपद' (सू. ४०) की भांति वक्तव्य है। सकायिक-जीवों का अल्पबहुत्व उसी प्रकार औधिक उसी प्रकार (सू. ५०) औधिक वक्तव्य है।
(सू. ५०) की भांति वक्तव्य है। ११८/१-२] की वक्तव्यता वैसे ही यावत् अधःसप्तमी की। सौधर्म की भी इसी प्रकार यावत् ईषत्-प्रागभारा-पृथ्वी की भी इसी प्रकार (उक्त है (भ. २४/११५-११७) वैसे ही रत्नप्रभा पृथ्वी वक्तव्य है)। इस प्रकार यावत् अधःसप्तमी (वक्तव्य है)। सौधर्म इसी प्रकार वक्तव्यता।
(वक्तव्य है)। इस प्रकार यावत् ईषत्-प्रागभारा-पृथ्वी (वक्तव्य है)। १३४५-७| इसी प्रकार नौल-वर्ण-पर्यवों की अपेक्षा से वक्तव्य है, एकवचन और बहुवचन वाले दोनों दंडक वक्तव्य हैं। इस प्रकार इस प्रकार यावत् (अनेक) वैमानिक (वक्तव्य हैं)। इस प्रकार नील-वर्ण-पर्यों की अपेक्षा (वैमानिकों तक) प्रत्येक दण्डक एकवचन यावत् रूक्ष-स्पर्श-पर्यवों की वक्तव्यता।
और बहुवचन दोनों में (वक्तव्य हैं)। ८०६/१७३/४-८ द्वि-प्रदेशी स्कन्ध की भांति है (भ. २५/१७१)। (एक) सप्त-प्रदेशी स्कन्ध (एक) त्रि-प्रदेशो स्कन्ध की भांति है (भ.
द्विप्रदेशिक स्कन्ध (भ. २५/१७१) की भांति है। (एक) सप्तप्रदेशिक स्कन्ध (प्रदेश की अपेक्षा) (एक) त्रिप्रदेशिक स्कन्ध (भ. २५/ |२५/१७२) (एक) अष्ट-प्रदेशी स्कन्ध (एक) चतुः-प्रदेशी स्कन्ध की भांति है (भ. २५/१७३)। (एक) नव-प्रदेशी १७२) की भांति है। (एक) अष्टप्रदेशिक स्कन्ध (प्रदेश की अपेक्षा) (एक) चतुःप्रदेशिक स्कन्ध (भ. २५/१७३) की भांति है। स्कन्ध (एक) परमाणु-पुद्गल की भांति है। (भ. २५/१७०) । (एक) दस-प्रदेशी स्कन्ध (एक) द्वि-प्रदेशी स्कन्ध की भांति (एक) नवप्रदेशिक स्कन्ध (प्रदेश की अपेक्षा) (एक) परमाणु-पुद्गल (भ. २५/१७०) की भांति है। (एक) दस-प्रदेशिक स्कन्ध हे (भ. २५/१७१)।
(प्रदेश की अपेक्षा) (एक) द्विप्रदेशिक स्कन्ध (भ. २५/१७१) की भांति है।
शतक २६ |९२२सूत्र २ सर्वत्र अंतिम अंक के पूर्व स्थित दोनों विराम हटेंगे तथा अंत में एक विराम रहेगा। जैसे ।।१।। (अशुद्ध) की जगह १ । (शुद्ध) पढ़ें
शतक ४१ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति
अशुद्ध |९४८/ २४ |३,४ | | राशियुग्म-कृतयुग्म-वानमन्तर, -ज्योतिषिक और- वैमानिक-देवों के विषय में वैसा ही बतलाना चाहिए जैसा राशियुग्म- | राशियुग्म-कृतयुग्म-वारमन्तर-देव, राशियुग्म-कृतयुग्म-ज्योतिषिक-देवों और राशियुग्म-कृतयुग्म-वैमानिक-देव (राशियुग्म-कृतयुग्म-) कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में बतलाया गया था। (भ. ४१/३-१४)
नैरयिक-जीवों (भ. ४१/३-१४) की भांति (वक्तव्य हैं)।