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भगवती सूत्र
श. ४१ : उ. १: सू. ६-१५
(गौतम!) यह अर्थ संगत नहीं है। ७. (भन्ते!) वे जीव जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्म होते हैं? जिस समय द्वापरयुग्म होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं? (गौतम!) यह अर्थ संगत नहीं है। ८. (भन्ते!) वे जीव जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं? जिस
समय कल्योज होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं? (गौतम!) यह अर्थ संगत नहीं है। ९. भन्ते! वे जीव कैसे उपपन्न होते हैं? गौतम! जिस प्रकार कोई प्लवक (कूदनेवाला) कूदता हुआ, इस प्रकार जैसा उपपात-शतक (भ. ३१।५) में बतलाया गया है यावत् (इस प्रकार अध्यवसाय का निर्वर्तन करके कूदने की क्रिया के उपाय से. इसी प्रकार जैसे २५वें शतक में आठवें उद्देशक (स. ६२०) में नैरयिक-जीवों की वक्तव्यता है वैसे ही यहां पर भी बतलानी चाहिए, यावत् 'अपने प्रयोग से उपपन्न होते हैं) पर प्रयोग से उपपन्न नहीं होते' तक। १०. भन्ते ! ये जीव क्या आत्म-यश (आत्म-संयम) से उपपन्न होते हैं? अथवा आत्म-अयश (आत्म-असंयम) से उपपन्न होते हैं? गौतम! वे जीव आत्म-यश से उपपन्न नहीं होते, आत्म-अयश से उपपन्न होते हैं। ११. यदि ये जीव आत्म-अयश से उपपन्न होते हैं तो क्या आत्म-यश का जीवन जीते हैं?
अथवा आत्म-अयश का जीवन जीते हैं? गौतम ! वे आत्म-यश का जीवन नहीं जीते, आत्म-अयश का जीवन जीते हैं। १२. यदि आत्म-अयश का जीवन जीते हैं तो क्या ये जीव सलेश्य हैं? अथवा अलेश्य हैं?
गौतम! ये जीव सलेश्य हैं, अलेश्य नहीं हैं। १३. यदि ये जीव सलेश्य हैं तो क्या क्रिया-सहित हैं? अथवा क्रिया-रहित हैं?
गौतम! वे जीव क्रिया-सहित हैं, क्रिया-रहित नहीं हैं। १४. यदि ये जीव क्रिया-सहित हैं तो क्या उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सभी दुःखों का
अन्त करते हैं? (गौतम !) यह अर्थ संगत नहीं हैं। १५. भन्ते! राशियुग्म-कृतयुग्म-असुरकुमार-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? जैसे राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में बतलाया गया वैसे ही सम्पूर्ण रूप में बतलाया चाहिए। इसी प्रकार यावत् 'राशियुग्म-कृतयुग्म-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों' तक बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-राशियुग्म-कृतयुग्म-वनस्पतिकायिक-जीव यावत् असंख्येय भी उत्पन्न होते हैं, अनन्त भी उत्पन्न होते हैं, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए। राशियुग्म--कृतयुग्म-मनुष्यों के विषय में भी उसी प्रकार बतलाना चाहिए यावत् आत्म-यश
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